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करना, यह अविनय दोष है ।
१०. अबहुमान : बहुमान एवं उत्साह रहित, किसी के दबाव से सामायिक करना अबहुमान सामायिक है ।
वचन के दस दोष इस प्रकार हैं :
'कुवयण सहसाकारो, सछंद संखेय कलहं च। विग्गहा विहांसोऽसुद्धं निखेक्खो मुणमुणा दस दोसा ।।१२५ २. सहसाकार; ३. स्वच्छन्द; ४. संक्षेप; ६. विकथा; ७. हास्य; ८. अशुद्ध;
१०. मुण मुण;
१. कुवचन;
५. कलह;
६. निरपेक्ष; और
जैनदर्शन में समत्वयोग की साधना
१. कुवचन : सामायिक में असभ्य, तुच्छ, अपमानजनक वचन बोलना कुवचन दोष है ।
२. सहसाकार : असावधानी से बिना सोचे समझे सहसा असत्य
बोलना सहसाकर दोष है।
३. स्वच्छन्द : शास्त्र - सिद्धान्त के विरूद्ध अनादर युक्त बोलना स्वच्छन्द दोष है 1
४. संक्षेप : सामायिक सूत्र को सम्पूर्णतः न बोलकर उसका संक्षेप में उच्चारण करना संक्षेप दोष है ।
५. कलह : दूसरे के मन को दुःख पहुँचे, पारस्परिक क्लेश पैदा हो, जानबूझकर ऐसे शब्द बोलना कलह दोष है ।
६. विकथा : बिना किसी उद्देश्य के, मनोरंजन की दृष्टि से स्त्रीकथा, भक्तकथा, राजकथा और देशकथा करना विकथादोष है ।
७.
हास्य : सामायिक में हंसी, मसखरी करना, कटाक्ष एवं व्यंगपूर्ण शब्द बोलना हास्य दोष हैं ।
८. अशुद्ध : सामायिक पाठ के शब्दों को असावधानी से जल्दी-जल्दी बोलना, स्वर व्यंजन का ध्यान नहीं रखना, यह अशुद्ध दोष है।
६. निरपेक्ष : सामायिक में सूत्र सिद्धान्त और शास्त्र की उपेक्षा करके असत्य बोलना निरपेक्ष दोष है ।
१०. मुणमुण : मुणमुण का अर्थ है गुनगुनाना । सूत्र आदि का पाठ करते समय शब्दों का उच्चारण स्पष्ट नहीं करना, जैसे-तैसे गुनगुनाते हुए बोलना, यह मुणमुण दोष है
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१२५ वही पृ. ६१ ।
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