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________________ २०० करना, यह अविनय दोष है । १०. अबहुमान : बहुमान एवं उत्साह रहित, किसी के दबाव से सामायिक करना अबहुमान सामायिक है । वचन के दस दोष इस प्रकार हैं : 'कुवयण सहसाकारो, सछंद संखेय कलहं च। विग्गहा विहांसोऽसुद्धं निखेक्खो मुणमुणा दस दोसा ।।१२५ २. सहसाकार; ३. स्वच्छन्द; ४. संक्षेप; ६. विकथा; ७. हास्य; ८. अशुद्ध; १०. मुण मुण; १. कुवचन; ५. कलह; ६. निरपेक्ष; और जैनदर्शन में समत्वयोग की साधना १. कुवचन : सामायिक में असभ्य, तुच्छ, अपमानजनक वचन बोलना कुवचन दोष है । २. सहसाकार : असावधानी से बिना सोचे समझे सहसा असत्य बोलना सहसाकर दोष है। ३. स्वच्छन्द : शास्त्र - सिद्धान्त के विरूद्ध अनादर युक्त बोलना स्वच्छन्द दोष है 1 ४. संक्षेप : सामायिक सूत्र को सम्पूर्णतः न बोलकर उसका संक्षेप में उच्चारण करना संक्षेप दोष है । ५. कलह : दूसरे के मन को दुःख पहुँचे, पारस्परिक क्लेश पैदा हो, जानबूझकर ऐसे शब्द बोलना कलह दोष है । ६. विकथा : बिना किसी उद्देश्य के, मनोरंजन की दृष्टि से स्त्रीकथा, भक्तकथा, राजकथा और देशकथा करना विकथादोष है । ७. हास्य : सामायिक में हंसी, मसखरी करना, कटाक्ष एवं व्यंगपूर्ण शब्द बोलना हास्य दोष हैं । ८. अशुद्ध : सामायिक पाठ के शब्दों को असावधानी से जल्दी-जल्दी बोलना, स्वर व्यंजन का ध्यान नहीं रखना, यह अशुद्ध दोष है। ६. निरपेक्ष : सामायिक में सूत्र सिद्धान्त और शास्त्र की उपेक्षा करके असत्य बोलना निरपेक्ष दोष है । १०. मुणमुण : मुणमुण का अर्थ है गुनगुनाना । सूत्र आदि का पाठ करते समय शब्दों का उच्चारण स्पष्ट नहीं करना, जैसे-तैसे गुनगुनाते हुए बोलना, यह मुणमुण दोष है 1 १२५ वही पृ. ६१ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001732
Book TitleJain Darshan me Samatvayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyvandanashreeji
PublisherPrem Sulochan Prakashan Peddtumbalam AP
Publication Year2007
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Yoga, & Principle
File Size7 MB
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