________________
समत्वयोग : साधक, साध्य और साधना
१६६
सामायिक में दस मन के, दस वचन के और बारह काया के दोषों को जानना अति आवश्यक है, जिससे साधक इन दोषों से बच कर पवित्र सामायिक व्रत या समत्वयोग की साधना कर सकते हैं।
मन के दस दोष इस प्रकार हैं : 'अविवेक जसो कित्ती लाभत्थो गवव भय नियाणत्थो संसय रोस अविणओ अबहुमाणए दोसा भाणियव्वा ।२४ १. अविवेक;
२. यशःकीर्ति; ३. लाभार्थ; ४. गर्व ५. भय;
६. निदान; ७. संशय; ८. रोष;
६. अविनय; और १०. अबहुमान। १. अविवेक : सामायिक करते समय विवेक नहीं रखना अथवा
सामायिक के प्रयोजन और स्वरूप के ज्ञान से वंचित रहकर
सामायिक करना, यह अविवेक दोष है। २. यशःकीर्ति : सामायिक करने से मुझे यश मिले, समाज में
मेरा आदर-सत्कार हो, लोग मुझे धर्मात्मा कहें - इस प्रकार
की कामना से सामायिक करे, तो यह यशःकीर्ति दोष है। ३. लाभार्थ : धन, अर्थ की इच्छा रखकर व्यापार में वृद्धि हो,
रोग-शोक और विपदा नष्ट हो जाये इत्यादि विचार से
सामायिक करे तो लाभार्थ दोष होता है। ४. गर्व : मेरे जितनी सामायिक कोई नहीं कर सकता, ऐसी अहं
की भावना से जो सामायिक करे, वह गर्व दोष है। ५. भय : यदि मैं सामायिक नहीं करूंगा तो लोगों में मेरी
आलोचना होगी। इस प्रकार की चिन्ता व भय से सामायिक
करना भय दोष है। ६. निदान : निदान का अर्थ है प्राप्ति की इच्छा रखना। धन,
स्त्री, पुरुष आदि का लाभ हो, ऐसे फल की इच्छा का संकल्प
करके सामायिक करे तो निदान दोष है। ७. संशय : इतनी समायिक करने से मुझे अमुक फल की प्राप्ति
होगी या नहीं, इस प्रकार की शंका करना यह संशय दोष है। ८. रोष : क्रोध, मान, माया और लोभपूर्वक एवं अन्य कषायसहित
सामायिक करना रोष दोष है। ६. अविनय : सामायिक में देव, गुरू और धर्म की विनय नहीं
१२४ उद्धृत सामायिकसूत्र पृ. ५६-६० ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org