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________________ समत्वयोग : साधक, साध्य और साधना २०१ १२६ काया के बारह दोष इस प्रकार हैं : 'कुआसणं चलासणं चला दिट्ठी, सावज्जकिरिया लंबण कुंचण पसारण। आलस मोडन मल विमासणं, निद्रा वेयावच्चति बारस काय दोसा।।१२६ १. कुआसन, २. चलासन; ३. चलदृष्टि; ४. सावधक्रिया; ५. आलम्बन; ६. आकुंचन-प्रसारण; ७. आलस्य; ८. मोड़न; ६. मल; १०. विमासण; ११. निद्रा; और १२. वैयावृत्य। १. कुआसन : सामायिक में पैर पर पैर चढ़ाकर अयोग्य रूप से अभिमान एवं अविनयपूर्वक गुरू के समक्ष बैठना कुआसन दोष है। २. चलासन (अस्थिरासन) : सामायिक में अस्थिर और झूलते आसन पर बैठना अथवा बैठने की जगह बार-बार बदलना चलासन दोष है। ३. चलदृष्टि : दृष्टि स्थिर न रखकर चंचल रखना, बार-बार इधर-उधर दृष्टि करना चल दृष्टि दोष है। ४. सावधक्रिया : सामायिक में बैठकर पापयुक्त क्रिया स्वयं करना ___अथवा संकेतपूर्वक दूसरों से कराना सावध क्रिया दोष है। ५. आलम्बन : बिना किसी रोगादि के कारण दीवार या अन्य चीजों का सहारा लेना प्रमाद, आलस्य और अविनय का सूचन है। यह आलम्बन दोष है। ६. आकुंचनप्रसारण : निष्प्रयोजन हाथ-पैरों को सिकोड़ना, लम्बे करना आकुंचन प्रसारण दोष है। ७. आलस्य : सामायिक में आलस्य करना या गहराई से अंगड़ाई लेना आलस्य दोष है। ८. मोड़न : सामायिक में बैठकर हाथ-पैर व अन्य अवयव को दबाकर आवाज करना मोड़न दोष है। ६. मल : शरीर का मैल निकालना मल दोष है। १०. विमासण : गाल पर हाथ रखकर शोकग्रस्त बैठना, इधर-उधर जाना आना, चिन्ता करना विमासण दोष है। १२६ उद्धृत सामायिकसूत्र पृ. ६३ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001732
Book TitleJain Darshan me Samatvayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyvandanashreeji
PublisherPrem Sulochan Prakashan Peddtumbalam AP
Publication Year2007
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Yoga, & Principle
File Size7 MB
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