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जैन दर्शन में समत्वयोग की साधना
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वाला प्रयास सामायिक है । सामायिक प्रतिमा से श्रावक समत्व प्राप्त करता है । मन, वचन और काया को शुद्ध करके सामायिक करने को सामायिक प्रतिमा कहते है ।' ४. पौषध प्रतिमा : प्रत्येक मास में दो अष्टमी, दो चतुर्दशी आदि पर्व दिनों में निरतिचार पूर्ण पौषध करना पौषध प्रतिमा है ।
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५. ब्रह्मचर्य प्रतिमा : ब्रह्मचर्य का पूर्णरूप से पालन करना ब्रह्मचर्य प्रतिमा है। कार्तिकेयानुप्रेक्षा में यह बताया गया है कि सब स्त्रियों का
मन-वचन-काय,
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कृत- कारित - अनुमोदना से सर्वथा त्याग करना ब्रह्मचर्य प्रतिमा है । ६. सचित्त आहार - वर्जन प्रतिमा : इस प्रतिमा में सचित्त आहार का पूर्णरूप से त्याग करना होता है । ७. आरम्भ-त्याग प्रतिमा : समत्वी साधक आरम्भ का
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(क) 'जो कुणदि काउसग्गं, वारसआवत्तसंजदो धीरो ।
णमणदुगं पि कुणतो, चदुप्पणामो पसण्णप्पा ।। ३७१ ।। चिंतंतो ससरू, जिणबिंबं अहव अक्खरं परमं ।
ज्झायदि कम्मविवायं, तस्स वयं होदि सामइयं ।। ३७२ ।। ' (ख) वसुनन्दिश्रावकाचार २७६ ।
'उत्तम - मज्झ जहण्णं तिविहं पोषहविहाणमुद्दिद्धं । सगसत्तीए मासम्मि चउस्सु पव्वेसु कायव्वं ॥ २८० ॥ (ख) 'चतुराहार विसर्जनमुपवासः प्रोषधः सकृद् भुक्तिः । स प्रोषधोपवासो यदुपोयारंभमाचरति ।। १०६ ।।' (क) उत्तराध्ययनसूत्र टीका पत्र ३०१७ । (ख) पंचाशक प्रकरण १० ।
'सव्वेसिं इत्थीणं जो अहिलासं ण कुव्वदे णाणी । मण वाया कायेण य बंभ वई सो हवे सदओ ।। ३८४ ।। ' (घ) षड्खण्डागम में गुणस्थान विवेचन पृ. ४६०
(क) 'जं वज्जिज्जइ हरियं तुयं, पत्त - पवाल - कंद-फल-बीयं । अप्पासुगं च सलिलं सचित्तणिव्वित्ति तं ठाणं ।। २६५ ।।' (ख) 'सच्चित्तं पत्त - फलं छल्ली मूलं च किसलयं बीयं ।
- वसुनन्दिश्रावकाचार |
जो ण य भक्खदि णाणी सचित्त विरदो हवे सो दु ।। ३७६ ।।' -कार्तिकेयानुप्रेक्षा । (ग) 'मूलफलशाकशाखा करीकन्द प्रसूनबीजानि ।
नामानि योऽत्ति सोऽयं सचित्तविरतो दयामूर्तिः ।। १४१ ।।' - रत्नकण्डक श्रावकाचार |
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-वही ।
- वसुनन्दिश्रावकाचार |
- रत्नकण्डक श्रावकाचार ।
- कार्तिकेयानुप्रेक्षा ।
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