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समत्वयोग : साधक, साध्य और साधना
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'विशेषावश्यकभाष्य' में भी कहा गया है कि :२३
'सामाइओवउत्तो जीवो सामाइयं सयं चेव' सामायिक में उपयोगयुक्त आत्मा अपने आप स्वयं सामायिक है। सामायिक के आठ पर्यायवाची नाम शास्त्रों में मिलते हैं, वे इस प्रकार हैं :
"सामाइयं समइयं सम्मेवाओ समास संखेवों।
अणवज्झं च परिण्णा पंच्चखाणेय ते अट्ठा।।' १. सामायिक; २. समायिक; ३. समवाद; ४. समास; ५. संक्षेप; ६. अनवद्य; ७. परिज्ञा; और ८. प्रत्याख्यान। इस तरह सामायिक के साधकों के आठ नाम हैं।
'दमदंत मेअज्जे कालय पुत्था चिलाइपुत्ते य।
धम्मतरूइ इला तेइली सामाइया अठ्ठदाहरणा।।' आठ सामायिक साधकों के आठ दृष्टान्तों के नाम इस प्रकार हैं : १. दमदन्त राजवी;
२. मेतार्य मुनि; ३. कालकाचार्य;
४. चिलाती पुत्र; ५. लौकिकाचार पण्डित लोग; ६. धर्मरुचि साधु; ७. इलाचीपुत्र; और
८. तेतली पुत्रादि। सामायिक के आठ नाम एवं उदाहरण इस प्रकार हैं : १. सामायिक : सामायिक उसे कहा गया है, जिसमें समता, समत्व
या समभाव हो। दमदन्त राजवी का समभाव सामायिक के
दृष्टान्त रूप में उपलब्ध होता है। २. समयिक : स-मयिक। मया का अर्थ है दया। सर्व जीवों के
प्रति दया भाव रखना, यही है समयिक या सामायिक। इस
समयिक पर मेतार्यमुनि का दृष्टान्त सुप्रसिद्ध है। ३. समवाद : सम का अर्थ है राग-द्वेष रहित। जिसमें राग-द्वेष
से रहित वचन बोले जाते हैं, वही समवाद सामायिक है। उसके लिये कालकाचार्य का दृष्टान्त दिया जाता है। ४. समास : समास का अर्थ है संलग्न होना, एकत्रित करना,
संक्षिप्त करना और कम शब्दों में शास्त्रों के मर्म को समझना।
१२३ सामाइयम्मि उ कए, समणो इव सावओ हवइ जम्हा । एएण कारणेण, बहुसो सामाइयं कुज्जा ।। २६६० ।।'
__-विशेषावश्यकभाष्य (उद्धृत् सामायिकसूत्र) ।
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