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________________ समत्वयोग : साधक, साध्य और साधना १६७ 'विशेषावश्यकभाष्य' में भी कहा गया है कि :२३ 'सामाइओवउत्तो जीवो सामाइयं सयं चेव' सामायिक में उपयोगयुक्त आत्मा अपने आप स्वयं सामायिक है। सामायिक के आठ पर्यायवाची नाम शास्त्रों में मिलते हैं, वे इस प्रकार हैं : "सामाइयं समइयं सम्मेवाओ समास संखेवों। अणवज्झं च परिण्णा पंच्चखाणेय ते अट्ठा।।' १. सामायिक; २. समायिक; ३. समवाद; ४. समास; ५. संक्षेप; ६. अनवद्य; ७. परिज्ञा; और ८. प्रत्याख्यान। इस तरह सामायिक के साधकों के आठ नाम हैं। 'दमदंत मेअज्जे कालय पुत्था चिलाइपुत्ते य। धम्मतरूइ इला तेइली सामाइया अठ्ठदाहरणा।।' आठ सामायिक साधकों के आठ दृष्टान्तों के नाम इस प्रकार हैं : १. दमदन्त राजवी; २. मेतार्य मुनि; ३. कालकाचार्य; ४. चिलाती पुत्र; ५. लौकिकाचार पण्डित लोग; ६. धर्मरुचि साधु; ७. इलाचीपुत्र; और ८. तेतली पुत्रादि। सामायिक के आठ नाम एवं उदाहरण इस प्रकार हैं : १. सामायिक : सामायिक उसे कहा गया है, जिसमें समता, समत्व या समभाव हो। दमदन्त राजवी का समभाव सामायिक के दृष्टान्त रूप में उपलब्ध होता है। २. समयिक : स-मयिक। मया का अर्थ है दया। सर्व जीवों के प्रति दया भाव रखना, यही है समयिक या सामायिक। इस समयिक पर मेतार्यमुनि का दृष्टान्त सुप्रसिद्ध है। ३. समवाद : सम का अर्थ है राग-द्वेष रहित। जिसमें राग-द्वेष से रहित वचन बोले जाते हैं, वही समवाद सामायिक है। उसके लिये कालकाचार्य का दृष्टान्त दिया जाता है। ४. समास : समास का अर्थ है संलग्न होना, एकत्रित करना, संक्षिप्त करना और कम शब्दों में शास्त्रों के मर्म को समझना। १२३ सामाइयम्मि उ कए, समणो इव सावओ हवइ जम्हा । एएण कारणेण, बहुसो सामाइयं कुज्जा ।। २६६० ।।' __-विशेषावश्यकभाष्य (उद्धृत् सामायिकसूत्र) । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001732
Book TitleJain Darshan me Samatvayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyvandanashreeji
PublisherPrem Sulochan Prakashan Peddtumbalam AP
Publication Year2007
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Yoga, & Principle
File Size7 MB
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