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कहा है कि :
सामायिक से विशुद्ध बनी हुई आत्मा ज्ञानावरणीय आदि कर्मों का क्षय कर लोकालोक को प्रकाशित करने वाले केवलज्ञान को प्राप्त करती है ।
'सामायिक विशुद्धात्मा सर्वथा घाति कर्मणः क्षयात्केवलमाप्नोती लोकालोक प्रकाशकम् ।।"
११६
कहा भी गया है कि १२० :
कितना भी उत्कृष्ट तप करे, जप जपे या चारित्र को ग्रहण करे, किन्तु समता ( उत्कृष्ट सामायिक) के बिना न तो किसी का मोक्ष हुआ है, न होता है और न होने वाला है ।
१२१
१२०
जैनदर्शन में समत्वयोग की साधना
'किं तिव्वेण तवेणं किं च जवेणं किं च चरितेणं । समयाइ विण मुक्खो न हु हुओ कहवि न हु होइ ।।'
१२१
भगवतीसूत्र में कहा गया है कि
अर्थात् आत्मा सामायिक है। आत्मा ही सामायिक का अर्थ है । उपाध्याय यशोविजयजी ने १२५ गाथाओं के स्तवन में कहा है कि : 'भगवती अंगे भखीओ, सामायिक अर्थ, सामायिक पण आत्मा धरो सूधो अर्थ, आत्मा तत्त्व विचारीए ।' अर्थात् आत्मा ही सामायिक है, अतः आत्मतत्त्व का विचार करो ।
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कुन्दकुन्दाचार्य ने नियमसार में सामायिक का वर्णन किया है त्रस और स्थावर, सभी जीवों के प्रति जो समता भाव रखता है, उसकी सामायिक स्थायी है । ऐसा केवली भगवन्तों ने कहा है ।
१२२
११६ अष्टकप्रकरण ३०/१ |
उद्धृत - सामायिकसूत्र पृ. ७८ ( अमरमुनि) । भगवतीसूत्र १ / ६ ( पाठान्तर है ) ।
'अप्पा सामाइयं, अप्पा सामाइयस्स अत्थो ।'
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१२२ ' जो समो सव्वभूदेसु थावरेसु तसेसु वा ।
तस्स सामाइगं ठाइ इदि केवलि सासणे ।। १२६ ।।'
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-नियमसार ।
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