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________________ १६६ कहा है कि : सामायिक से विशुद्ध बनी हुई आत्मा ज्ञानावरणीय आदि कर्मों का क्षय कर लोकालोक को प्रकाशित करने वाले केवलज्ञान को प्राप्त करती है । 'सामायिक विशुद्धात्मा सर्वथा घाति कर्मणः क्षयात्केवलमाप्नोती लोकालोक प्रकाशकम् ।।" ११६ कहा भी गया है कि १२० : कितना भी उत्कृष्ट तप करे, जप जपे या चारित्र को ग्रहण करे, किन्तु समता ( उत्कृष्ट सामायिक) के बिना न तो किसी का मोक्ष हुआ है, न होता है और न होने वाला है । १२१ १२० जैनदर्शन में समत्वयोग की साधना 'किं तिव्वेण तवेणं किं च जवेणं किं च चरितेणं । समयाइ विण मुक्खो न हु हुओ कहवि न हु होइ ।।' १२१ भगवतीसूत्र में कहा गया है कि अर्थात् आत्मा सामायिक है। आत्मा ही सामायिक का अर्थ है । उपाध्याय यशोविजयजी ने १२५ गाथाओं के स्तवन में कहा है कि : 'भगवती अंगे भखीओ, सामायिक अर्थ, सामायिक पण आत्मा धरो सूधो अर्थ, आत्मा तत्त्व विचारीए ।' अर्थात् आत्मा ही सामायिक है, अतः आत्मतत्त्व का विचार करो । I कुन्दकुन्दाचार्य ने नियमसार में सामायिक का वर्णन किया है त्रस और स्थावर, सभी जीवों के प्रति जो समता भाव रखता है, उसकी सामायिक स्थायी है । ऐसा केवली भगवन्तों ने कहा है । १२२ ११६ अष्टकप्रकरण ३०/१ | उद्धृत - सामायिकसूत्र पृ. ७८ ( अमरमुनि) । भगवतीसूत्र १ / ६ ( पाठान्तर है ) । 'अप्पा सामाइयं, अप्पा सामाइयस्स अत्थो ।' Jain Education International १२२ ' जो समो सव्वभूदेसु थावरेसु तसेसु वा । तस्स सामाइगं ठाइ इदि केवलि सासणे ।। १२६ ।।' For Private & Personal Use Only -नियमसार । www.jainelibrary.org
SR No.001732
Book TitleJain Darshan me Samatvayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyvandanashreeji
PublisherPrem Sulochan Prakashan Peddtumbalam AP
Publication Year2007
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Yoga, & Principle
File Size7 MB
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