Book Title: Itihas ki Dharohar evam Karm Prashnottari
Author(s): Pragunashreeji, Priyadharmashreeji
Publisher: Pragunashreeji Priyadharmashreeji
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________________ विरुद्ध प्रवचनों को सुनकर अनन्य प्रभु भक्त माणेक शा मूर्ति पूजा का कट्टर विरोधी बन गया / उसके मन में, दिल और दिमाग में यह बातें बैठ गई कि निराकार की उपासना से ही निराकार पद की प्राप्ति होती है, जड़ प्रतिमा चैतन्य पर कोई उपकार नहीं कर सकती / ऐसे-ऐसे विचारों से उसकी श्रद्धा, विश्वास और समर्पण समाप्त हो गया / वर्षों की मजबूत श्रद्धा की इमारत एक क्षण में मटियामेट हो गई / किसी ने ठीक ही कहा है कि ध्वंस बहुत आसान है, मगर निर्माण कठिन है, पतन बहुत आसान है, मगर उत्थान कठिन है / माणेक शा के विचारों में इतना जबरदस्त परिवर्तन आ गया कि यतियों के पास उसने ऐसी प्रतिज्ञा कर ली कि अब मैं कभी भी किसी जिनालय में दर्शन-पूजन के लिए कदम नहीं रखूगा / अपने घर मन्दिर में भी नहीं जाऊँगा / इसके जीवन को देखकर यति तो आनन्द से भर गए / ___घोर मिथ्यात्व के उदय से और अत्याधिक दृष्टि राग के कारण माणेक शा आस्तिक से नास्तिक बन गया / अपने परम उपकारी गुरुदेव श्री हेमविमलसूरिजी की हितशिक्षा को भी भूल गया / योगसार ग्रन्थ में आचार्य श्री हरिभद्रसूरिजी ने कहा है कि दृष्टि रागो महामोहो, दृष्टि रागो महाभयः दृष्टि रागो महामारो, दृष्टि रागो महाज्वर / दृष्टि राग एक प्रकार का महान मोह है, दृष्टि राग सबसे बड़ा भय है, दृष्टि राग महान नाशक और महाज्वर है / ___ माणेक शा ने यतियों के पीछे लग कर प्रभु पूजा, दर्शन, धर्म क्रिया आदि सब बन्द कर दिया / जिनालय में मधुर कण्ठ से जो प्रतिदिन आरती भक्ति करता था वह सब कुछ बन्द कर दिया / मिथ्यायतियों को ही गुरु मानने लगा / प्रतिमा को पत्थर मानने लगा / 23