Book Title: Itihas ki Dharohar evam Karm Prashnottari
Author(s): Pragunashreeji, Priyadharmashreeji
Publisher: Pragunashreeji Priyadharmashreeji
View full book text
________________ आयुष्य कर्म- 1. आयुष्य कर्म केवल एक भव में एक बार ही बान्धा जाता है। 2. आयुष्य कर्म रसोदय से ही भोगा जाता है / 3. आयुष्य कर्म में अपवर्तनीय आयुष्य हो तो स्थिति घट सकती है परन्तु बढ़ नहीं सकती / 4. आयुष्य कर्म की उत्कृष्ट स्थिति 33 सागरोपम ही है / प्रश्न- 168. क्या बान्धे हुए सभी कर्म भोगने ही पड़ते हैं ? नहीं ! कर्म भी दो प्रकार के होते हैं / 1. निकाचित कर्म, 2. अनिकाचित कर्म / 1. निकाचित कर्म- निकाचित कर्मों को भोगे बिना छुटकारा नहीं होता / इन निकाचित कर्मों को आठ करण में से एक भी करण (उपक्रम) लागू नहीं होता / परन्तु जब जीव क्षपक श्रेणी पर चढ़े तो निकाचित कर्मों को समाप्त कर सकता है / 2. अनिकाचित कर्म- अनिकाचित कर्मों का अबाधाकाल के दौरान तप, त्याग, वैराग्य, समताभाव, प्रभु भक्ति द्वारा समाप्त किया जा सकता है। उत्तर प्रश्न- 169. अबाधाकाल किसे कहते हैं ? उत्तर सामान्य रूप से कर्म स्थिति दो प्रकार की होती है / 1. अबाधाकाल स्थिति, 2. विपाककाल स्थिति / कर्म बान्धने के पश्चात् जब तक वह उदय में नहीं आते आत्मा में शान्तभाव से पड़े रहते हैं वह अबाधाकाल कहा जाता है / 220