Book Title: Itihas ki Dharohar evam Karm Prashnottari
Author(s): Pragunashreeji, Priyadharmashreeji
Publisher: Pragunashreeji Priyadharmashreeji
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________________ उत्तर साधु जीवन स्वीकार करें / तप, त्याग, तितिक्षा (सहनशीलता) मय जीवन जीने की आदत डालें / प्रश्न- 202. प्रतिकूलता को सहने के ओर कौन-कौन से लाभ हैं ? प्रतिकूलता को सहने से अनेकों ही लाभ हैं / 1. प्रतिकूलता सहने से पाप कर्म उदीरणा से भोग कर नाश हो जाते हैं। 2. प्रतिकूलता में शक्तियाँ खिल उठती हैं / 3. सत्व प्रगट होता है। 4. सात्विकता बढ़ जाती है। 5. शौर्य प्रगट होता है। 6. जीवन में उल्लास पैदा होता है। प्रश्न- 203. क्या पुण्य कर्म की भी उदीरणा करनी चाहिए ? उत्तर- ना ! अगर पुण्य कर्म की उदीरणा करके पुण्य को उदय में नहीं लाएँगे तो बेलेन्स में पड़े पुण्य कर्म शान्तिकाल पूर्ण होते ही उदय में आकर सुख देने वाले ही हैं / अगर जीवन सुखपूर्वक चल रहा है, सभी प्रकार की अनुकूलताएँ हैं तो भविष्य में आने वाले पुण्य को अभी शीघ्र लाने की क्या आवश्यकता है ? जैसे बैंक में पैसा पड़ा हो आवश्यकता न हो तो पड़ा रहने देना चाहिए, कभी जरूरत पड़े तो उपयोग में ले सकते हैं। प्रश्न- 204. पुण्य कर्म की उदीरणा कैसे होती है ? उत्तर- खूब प्रयत्न करके अनुकूलताओं को प्राप्त किया यानि अनुकूलता, 236