Book Title: Itihas ki Dharohar evam Karm Prashnottari
Author(s): Pragunashreeji, Priyadharmashreeji
Publisher: Pragunashreeji Priyadharmashreeji

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Page 253
________________ करलें तो पुण्य में न्यूनता आयेगी / पाँचवाँ करण यानि अपवर्तना करण | पुण्य में कमी और पाप में वृद्धि होगी। संगम ग्वाले ने पूर्वजन्म में खीर का दान देकर उसकी सतत अनुमोदना करते रहने से पुण्य कर्म में खूब वृद्धि हुई परिणाम स्वरूप शालीभद्र बना / अतः धर्माराधना के पश्चात् अवश्य बारम्बार अनुमोदन करने में आये तो पुण्य में वृद्धि होगी / पाप करने के पश्चात् शान्तिकाल में पाप की प्रशंसा करने में आये तो पाप की तीव्रता बढ़ जाएगी / अतः सदैव सत्कार्यों की प्रशंसा करने से समय और तीव्रता में वृद्धि होती है / निन्दा और पश्चात्ताप करने से समय-तीव्रता में घटौतरी होती है। प्रसन्नचन्द्र राजर्षि ने अध्यवसायों के बल से ही नरक प्रायोग्य कर्मों को क्षपित कर निर्वाण योग्य बना लिये / पाप कर्मों की अपवर्तना हुई तथा पुण्य कर्मों की उद्वर्तना हुई / प्रश्न- 209. निद्धति और निकाचना करण समझाएँ ? उत्तर- दोनों करण की व्याख्या प्रश्न संख्या 175 में दी जा चुकी है / (इस प्रकार कर्म और करण की व्याख्या संक्षेप से सम्पूर्ण हुई / ) स्वयं सिद्ध बनकर दिया, जन-मानस को ज्ञान / कर्म 'पारदर्शी' करो, बनो वीर भगवान / / 239

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