Book Title: Itihas ki Dharohar evam Karm Prashnottari
Author(s): Pragunashreeji, Priyadharmashreeji
Publisher: Pragunashreeji Priyadharmashreeji
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________________ उत्तर की गई धर्माराधना अथवा किया गया पश्चात्ताप निष्फल नहीं जाता / उससे नए पुण्य कर्म का बन्ध होगा तथा आत्मा में रहे अनिकाचित अशुभ कर्म नष्ट हो जाएँगे / परन्तु हो चुके निकाचित कर्मों में फेरफार नहीं होता / उत्तर प्रश्न- 180. निकाचित कर्मों के कुछ दृष्टान्त दीजिए ? 1. भगवान महावीरस्वामीजी ने समकित के बाद तीसरे भव में, मरिची के भव में कुल का अभिमान कर नीच गोत्र निकाचित बान्धा था, उन्हें भोगना ही पड़ा | 27वें भव में भी 82 दिन तक देवानन्दा नामक ब्राह्मणी की कुक्षी में रहना पड़ा / दो माता बनने का कलंक स्वीकारना पड़ा / 25वें भव, नन्दनराजर्षि के भव में 11 लाख 80 हजार 645 मासक्षमण किए तो भी यह कर्म नाश न हुआ कारण कि वह निकाचित हो चुका था / 2. 18वें त्रिपृष्ठ वासुदेव के भव में संगीत के स्वर बन्द न करने वाले शय्यापालक के कान में गर्म-गर्म सीसा तीव्र दुष्ट भाव से डलवाया कि कर्म निकाचित बान्ध लिया / प्रभु वीर के भव में साधना द्वारा कोई फेरफार न हुआ, कर्म उदय में आया कि कानों में कीले गढ़वाने पड़े / 3. अरे ! केवलज्ञान के पश्चात् भगवान बन जाने के बाद भी निकाचित कर्मों ने नहीं छोड़ा / केवलज्ञान से 14 वर्ष पश्चात् मोक्ष जाने में अभी 16 वर्ष शेष हैं तब प्रभु के ऊपर गौशालक ने तेजोलेश्या छोड़ी, जिससे प्रभु वीर को 6 मास तक खून के दस्त हुए निकाचित कर्म भगवान बन जाने पर भी नहीं छोड़ते / 4. श्रेणिक महाराजा का नरक में जाना, सीता पर कलंक आना, 226