Book Title: Itihas ki Dharohar evam Karm Prashnottari
Author(s): Pragunashreeji, Priyadharmashreeji
Publisher: Pragunashreeji Priyadharmashreeji
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________________ उत्तर अबाधाकाल यानि जब तक पाप कर्म उदय में नहीं आए हों तब तक धर्म में तीव्र पुरुषार्थ कर लेना चाहिए / अबाधाकाल में अशुभ कर्मों को तप-संयम की जोरदार साधना के द्वारा क्षीण कर देना चाहिए / मानव जीवन की सफलता हेतु सद्गुरु की सेवामें सदैव तत्पर रहना, परमात्मा की भावपूर्वक भक्ति करनी, सभी जीव सुखी बने ऐसी सतत भावना करनी जिससे परलोक में नारक-तिर्यंचादि दुर्गतियों में नहीं जाना पड़ेगा / प्रश्न- 185. किस कर्म का कितना अबाधाकाल होता है ? उत्तर- जिस कर्म की उत्कृष्ट स्थिति जितने कोटा-कोटि सागरोपम प्रमाण होती है उस कर्म का उतने ही सौ वर्ष का अबाधाकाल. होता है / जैसे किसी कर्म की स्थिति एक कोटा-कोटि सागरोपम की है तो उसकी स्थिति में 100 वर्ष का अबाधाकाल होता है / अर्थात् वह कर्म 100 वर्ष के बाद उदय में आएगा / वह 100 वर्ष का समय हमारे लिए ( Golden Peried ) अत्यन्त उपयोगी कहा जाएगा / उस 100 वर्ष में ही कर्मों का फेरफार कर सकते उत्तर प्रश्न- 186. आठों कर्मों का स्वरूप समझने के बाद आत्मा में स्थिर कैसे बन / सकते हैं ? आठों कर्मों का विवेचन जानने के बाद कैसी भी परिस्थिति का सामना क्यों न करना पड़े, आत्मा में इस प्रकार चिन्तन करना1. हे आत्मन् ! तू वास्तव में अनन्तज्ञानी होने पर भी वर्तमान में जो अज्ञानता, मूखर्ता का अनुभव कर रहा है बहुत-बहुत परिश्रम करने के बावजूद भी याद नहीं रहता / हे जीव ! उसका कारण ज्ञानावरणीय कर्म का विपाक है / इसे तोड़ने के लिए ज्ञान-ज्ञानी-ज्ञान के साधनों की भक्ति कर | . 229