Book Title: Itihas ki Dharohar evam Karm Prashnottari
Author(s): Pragunashreeji, Priyadharmashreeji
Publisher: Pragunashreeji Priyadharmashreeji

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Page 235
________________ जब वह कर्म उदय में आ जाते हैं उन्हें विपाककाल कहा जाता उत्तर प्रश्न- 170. अबाधाकाल में कर्मों का फेरफार कैसे होता है ? जो कर्म निकाचित न बना हो तो अबाधाकाल में बहुत ही फेरफार हो सकता है / जैसे- साता वेदनीय के रूप में बान्धा हुआ कर्म अशाता वेदनीय कर्म के रूप में संक्रमण हो सकता है | बान्धे हुए सजातीय कर्म में ही संक्रमण होता है | साता का असाता में, असाता का साता में | आयु कर्म में सजातीय में यह नियम लागू नहीं होता | जैसे मोहनीय कर्म का अन्तराय में, नामकर्म का गोत्र में ऐसे मूल प्रकृतियों में परस्पर संक्रमण नहीं होता / परन्तु उसी कर्म की उत्तरप्रकृतियों के साथ फेरफार हो सकता है / प्रश्न- 171. कर्मों की स्थिति को बढ़ाया या घटाया भी जा सकता है ? उत्तर- हाँ ! जिस रूप में कर्म को बान्धा उसका समय (स्थिति) तथा रस को बढ़ाया भी जा सकता है / स्थिति और रस का बढ़ना उद्वर्तना करण कहलाता है तथा स्थिति और रस का घटना (घट जाना) अपवर्तना करण कहलाता है / उत्तर प्रश्न- 172. कर्मों का बढ़ना (उद्वर्तना) घटना (अपवर्तना) कैसे होता है ? निकाचित कर्मों के बिना (जो कि बहुत थोड़े होते हैं) शेष अनिकाचित कर्मों को पुरुषार्थ द्वारा घटाया-बढ़ाया जा सकता है / ट्रांसफर न हो तो 100 वर्ष की स्थिति को 10 वर्ष की कर सकते हैं / पाप पुरुषार्थ से 10 वर्ष की स्थिति को 100 वर्ष की भी कर सकते हैं / जैसे 50 वर्ष तक बीमारी को भोगना या और तीव्रता पूर्वक वेदना को सहना था / परन्तु शान्तिकाल (अबाधाकाल) के समय गुरु वैयावच्च कर, प्रभु-भक्ति कर उन कर्मों की तीव्रता और वेदना में 221

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