Book Title: Itihas ki Dharohar evam Karm Prashnottari
Author(s): Pragunashreeji, Priyadharmashreeji
Publisher: Pragunashreeji Priyadharmashreeji
View full book text
________________ उत्तर- वेदनीय कर्म की जघन्य स्थिति- 12 मुहूर्त की है / नाम और गोत्र कर्म की जघन्य स्थिति-8 मुहूर्त है / शेष सभी कर्मों की अन्तमुहूर्त स्थिति है। प्रश्न- 166. सम्यग्दृष्टि तथा मिथ्यादृष्टि में क्या अन्तर है ? . उत्तर- सम्यग्दृष्टि- 1. ज्ञानी होता है / 2. सर्वज्ञकथित तत्वों पर पूर्ण श्रद्धा होती है / 3. मोक्ष प्राप्ति के लक्ष्यपूर्वक धार्मिक क्रिया करता है। 4. आत्मिक विकास के साधन मिलने पर आनन्द का अनुभव करता है / 5. स्याद्वाद दृष्टि वाला होता है / 6. आत्मा और शरीर के भेद ज्ञान वाला होता है / मिथ्यादृष्टि- 1. अज्ञानी होता है / 2. सर्वज्ञ कथित तत्वों पर श्रद्धा नहीं होती / 3. सांसारिक सुख सामग्री के लक्ष्य को लेकर धार्मिक क्रिया करता है | 4. सांसारिक सुख सामग्री मिलने पर आनन्दित होता है / 5. एकान्तवादी होता है / 6. आत्मा और शरीर को एक समझता है / प्रश्न- 167. ज्ञानावरणीय आदि सात कर्म तथा आयुष्य कर्म में क्या अन्तर उत्तर ज्ञानावरणीय आदि 7 कर्म- 1. ज्ञानावरणीय आदि सातों कर्मों को जीव समय-समय बान्धता है। . 2. सातों ही कर्मों को रसोदय तथा प्रदेशोदय से भोगा जाता है / 3. सातों कर्मों में स्थिति और रस का उद्वर्तना (बढ़ना) तथा घटना (अपवर्तना) हो सकता है / 4. ज्ञानावरणीय-दर्शनावरणीय वेदनीय की उत्कृष्ट स्थिति 30 कोटा-कोटि सागरोपम, मोहनीय की 70 कोटा-कोटि सागरोपम, नाम गोत्र की 20 कोटा-कोटि सागरोपम है / 219