Book Title: Itihas ki Dharohar evam Karm Prashnottari
Author(s): Pragunashreeji, Priyadharmashreeji
Publisher: Pragunashreeji Priyadharmashreeji
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________________ दूसरी तरफ प्रवास आगे बढ़ने लगा / रात-दिन उसके कदम तीव्र गति से आगे बढ़ने लगे / रास्ते में अनेकों कष्टों का सामना करता हुआ, दादा को याद करता हुआ एक दिन माणेक शा सिद्धपुर के पास मगरवाड़ा प्रदेश में पहुंच गया। मगरवाड़ा के आस-पास का प्रदेश भयग्रस्त था / उस प्रदेश में खूब झाड़ियाँ थीं, जिसमें चोर, डाकू, लुटेरे छिपे रहते थे और आने-जाने वाले मुसाफिरों को लूट लेते थे | माणेक शा सिद्धगिरि का ध्यान करता हुआ बड़ी सावधानी से आगे बढ़ रहा था / जैसे ही वह भयानक जंगल के बीच झाड़ियों के पास से गुजर रहा था कि चारों तरफ से मुँह को बान्धे हुए कितने ही लुटेरे उसके पीछे आकर बोलने लगे अरे ! वाणियाँ जहाँ है वहाँ पर खड़ा हो जा, तेरे पास जो कुछ भी है वह हमें सब दे दे / जरा भी इधर-उधर गया तो तुझे तलवार से मौत के घाट उतार दिया जाएगा / सेठ माणेक शा गिरिराज के ध्यान में मस्त था, लुटेरों की पड़कार को सुने बिना ही वह आगे बढ़ गया / चोरों ने सोचा जरूर इस सेठ के पास बहुत ज्यादा माल होगा इसीलिए यह हमारी बात को सुनी अनसुनी करके चला जा रहा है / अब इसे सजा देनी ही पड़ेगी / ऐसा सोचकर चोरों ने अपनी तलवार कालकर पीछे से सेठ के शरीर पर जोर से मारी | जिससे एक शरीर के तीन टुकड़े हो गए / सेठ के मुख से जय शत्रुञ्जय, जय आदिनाथ शब्द निकले और प्राण पखेरू उड़ गए | माणेक शा सेठ का शरीर- मस्तक, धड़ और पैर तीन भागों में बँट गया / यह दिन था विक्रम संवत् 1565 पौष वदि चौदस का / . . . अन्त समय शुभ भावों से मरकर सेठ माणेकचन्द व्यन्तर निकाय के छठे इन्द्र श्री माणिकभद्र यक्ष के रूप में उत्पन्न हुए / . सेठ माणेक शा की मृत्यु का समाचार हवा की भाँति चारों तरफ फैल गया / सेठ के परिवार वालों को सुनकर बहुत भारी आघात लगा जो कि असहनीय था / इसके साथ ही धर्मनिष्ठ आत्मा की इस प्रकार की मृत्यु को सुनकर आचार्यश्री हेमविमलसूरीश्वरजी महाराज को भी आघात तो लगा परन्तु 35