Book Title: Itihas ki Dharohar evam Karm Prashnottari
Author(s): Pragunashreeji, Priyadharmashreeji
Publisher: Pragunashreeji Priyadharmashreeji
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________________ मत करना / तीर्थोद्धार का फरमान लेकर समरा शा तुरन्त गुरु के पास पहुंचा और सारी बात सुना दी / समरा शा ने गुरु से शुभ मुहूर्त लेकर शीघ्र ही तीर्थोद्धार का कार्य शुरू करा दिया / अब प्रभुजी की प्रतिमा कौन से पाषण से बनानी इसका निर्णय करने के लिए समरा शा ने पाटण में सर्व संघ को एकत्रित करके कहा कि मन्त्री वस्तुपाल ने प्रतिमा बनाने के लिए शिलाएँ गुप्त स्थान में रखी हुई हैं आप मुझे वह शिला निकालने की अनुमति दो | तब आचार्यश्री तथा संघ के मुख्य व्यक्तियों ने समरा शा की भावना की अनुमोदना करते हुए कहा कि अभी समय बहुत खराब चल रहा है अभी मुगल बादशाह अपनी सत्ता सर्वत्र फैला रहे हैं / ऐसे समय में वे शिलाएँ निकालना अभी हमें योग्य नहीं लगता | आप आरासण की खान में से शिला निकाल कर अभी जिनबिम्ब बनाओ / समरा शा ने श्री संघ के वचन को मस्तक पर चढ़ाया और आरासण की खान में शिला निकलवाने का प्रयत्न शुरू किया / उस समय आरासण की खान राणा महीपाल के ताबे में थी / उससे आज्ञा लेकर समरा शा ने कारीगरों को बुलाया, ताम्बुल तथा मिष्ठ भोजन से उनका सम्मान करके खान में से शिला निकालने का कार्य चालू किया / जैसे ही शिला निकाली तो उसके बीच बहुत बड़ी तीराड़ पड़ी हुई थी / समरा शा ने दूसरी शिला निकालने का आर्डर दिया / जैसे ही दूसरी शिला निकाली तो उसके ठीक मध्य भाग में चीरा पड़ा हुआ था / यह सब देखकर समरा शा को बहुत बड़ा आघात लगा | उसने इसका कारण जानने के लिए अट्ठमतप करके चक्रेश्वरी देवी की आराधना की / उसने प्रकट होकर कहा कि शिला निकालने से पूर्व खान के अधिष्ठायक देव की पूजा विधि करनी चाहिए / जो आपने नहीं की है / इसीलिए उसका फल आपको यह मिला है / अब मैं आपको विधि बताती हूँ आप उसी प्रकार करके फिर शिला प्राप्त करो / तत्पश्चात् देवी के कथनानुसार सम्पूर्ण पूजा विधि करके शिला को बाहर निकाला, पानी से साफ किया और चन्दन-पुष्प आदि से शिला का पूजन 104