Book Title: Itihas ki Dharohar evam Karm Prashnottari
Author(s): Pragunashreeji, Priyadharmashreeji
Publisher: Pragunashreeji Priyadharmashreeji
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________________ उत्तर अनन्त पदार्थों को देखने की है परन्तु द्वारपाल की तरह दर्शनावरणीय कर्म आत्मा की दर्शन शक्ति को ढक देता है जिस कारण जीव संसार के अनन्त पदार्थों को देख नहीं सकता / परिणामस्वरूप आत्मा इस भव में बहुत वस्तुओं को देख नहीं सकता / प्रश्न- 88. दर्शनावरणीय कर्म का बन्ध कैसे होता है ? 1. सभी इन्द्रियों से सम्पूर्ण होने पर भी अपना इच्छित कार्य न होने से बोलना- क्या तू अन्धा है ? तुझे दिखाई नहीं देता ? क्या तू बहरा है ? तुझे कुछ सुनाई नहीं देता ? तेरे पाँव टूट गए हैं जो कार्य नहीं करता ? ऐसे शब्द बोलने से अपने को वैसा ही बनाने वाला दर्शनावरणीय कर्म का बन्ध हो जाता हैं / 2. कभी भी कान-आँख-नाक-जीभ-शरीर आदि का दुरुपयोग नहीं करना चाहिए / 3. दूसरों की निन्दा करने से, सिनेमा के गीत सुनने से, टीवी वीडियो द्वारा अश्लील चित्रों को देखने से, इन्द्रियों का दुरुपयोग करने से दर्शनावरणीय कर्म का बन्ध होता है | , 4. जागते हुए होने पर भी सोने का ढोंग करने से भी दर्शनावरणीय कर्म का बन्ध होता है / 5. जो दूसरों की चमड़ी उतारता है उसे भी अपनी चमड़ी उतरानी पड़ती है जैसे खन्धक मुनिवर पूर्व जन्म में चीभड़ा के फल की पूरी छाल उतारने पर उसकी अत्यन्त प्रशंसा करते हुए पत्नि को कहाहै तेरे पास ऐसी कला ! एक भी टुकड़ा उतारे बिना कैसी अखण्ड छाल उतारी ! परिणाम ! संयमी बनने के बाद शरीर की चमड़ी उतरानी पड़ी। 6. जो दूसरे को अन्धा कहता है दूसरे भव में अन्धा बनना पड़ता 177