Book Title: Itihas ki Dharohar evam Karm Prashnottari
Author(s): Pragunashreeji, Priyadharmashreeji
Publisher: Pragunashreeji Priyadharmashreeji
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________________ 3. मेघकुमार ने भी पूर्वभव में खरगोश की दया बुद्धि से जान * बचाई / जीवदया के प्रभाव से पुष्कल साता वेदनीय कर्म बान्धा / श्रेणिक महाराजा का पुत्र मेघकुमार बना / खूब सुखशाता को प्राप्त किया प्रभु महावीर के शिष्य बने केवलज्ञानी बन मुक्तिपद को पाए / 4. महाबल राजा व्रतों का पालन कर साता वेदनीय बान्धकर देवलोक के सुखों का भोक्ता बने / 5. स्वयं की इच्छा से सहन करें तब सकाम निर्जरा होती हैं / इच्छा बिना सहन करने से जो निर्जरा होती है वह अकाम निर्जरा कही जाती है / ऐसी सकाम अकाम निर्जरा समय भी साता वेदनीय कर्म का बन्ध होता है / 6. शूलपाणी यक्ष पूर्व भव में बलद था / खूब मार को खाया, सहन किया / साता वेदनीय के बन्ध से यक्षभव में साता की प्राप्ति हुई। चौथा कर्म : मोहनीय कर्म प्रश्न- 98. मोहनीय कर्म किसे कहते हैं ? उत्तर- 1. आत्मा के सत्य स्वरूप को भुलाकर संसार के पदार्थों में मोह पैदा करने वाला कर्म मोहनीय कर्म कहलाता है / 2. जिस प्रकार चलती गाड़ी में बैठे हों तब वृक्ष-मकान स्थिर होते हुए भी दौड़ते हुए नजर आते हैं परन्तु वास्तविक रूप से यह भ्रम है / वस्तुतः गाड़ी चलती है / परन्तु वृक्ष मकान स्थिर होते हैं / इसी प्रकार संसार के पदार्थों में सुख की भ्रमणा कराने वाला मोहनीय कर्म है। 3. संसार हकीकत में दुःखमय है तो भी उसमें सुख की बुद्धि मोहनीय कर्म करवाता है / 183