Book Title: Itihas ki Dharohar evam Karm Prashnottari
Author(s): Pragunashreeji, Priyadharmashreeji
Publisher: Pragunashreeji Priyadharmashreeji

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Page 205
________________ 3. देवद्रव्य का भक्षण करने से- परमात्मा को जो वस्तु समर्पण कर दी उसे देवद्रव्य कहते हैं | उस देवद्रव्य का स्वयं उपयोग करने से . मोहनीय कर्म बन्धता है / मन्दिरजी में कोई बोली बोलकर उसका पैसा न चुकाने से भी कर्म का बन्ध होता है अगर लेट हो जाए तो ब्याज सहित चुकाना चाहिए / ऋषभ दत्त श्रावक ने देवद्रव्य में पैसा लिखाया परन्तु देना ही भूल गया परिणाम स्वरूप ऐसा मोहनीय कर्म बन्धा कि मरने के बाद भैंसा बना मन्दिरजी के काम के लिए पानी उठाकर लाता वहाँ परमात्मा की हो रही पूजा को देखकर जातिस्मरण ज्ञान हुआ / परमात्म भक्ति करने लगा / अपनी भूल का पश्चाताप किया / ज्ञानी भगवन्त के कहने से किसी सेठ के पुत्र ने भैंसे को छुड़ाया / जितना पैसा लिखाया था पूर्वजन्म में, उससे भी हजारगुणा द्रव्य जमा कराकर भैंसे को परमात्मा के ऋण से मुक्त किया / अन्त में अनशन कर भैंसा स्वर्ग में गया / यह दृष्टान्त पढ़ने के बाद बोली बोलने के बाद तुरन्त पैसा जमा करा देना चाहिए / देवद्रव्य का नुकसान हो ऐसी प्रवृत्ति करने से भी मोहनीय कर्म का बन्ध होता है। 4. तीर्थंकर परमात्मा की निन्दा करने से / 5. साधु-साध्वी की निन्दा करने से / 6. जिन प्रतिमा की आशातना करने से / 7. चतुर्विध संघ की निन्दा करने से | इसके अतिरिक्त संगम देव ने प्रभु महावीर के ऊपर उपसर्गों को करने कठिन मोहनीय कर्म को बान्धा / इस प्रकार मोहनीय की व्याख्या संक्षिप्त से पूर्ण कर अब आगे के कर्मों का वर्णन पढ़ें / 191

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