Book Title: Itihas ki Dharohar evam Karm Prashnottari
Author(s): Pragunashreeji, Priyadharmashreeji
Publisher: Pragunashreeji Priyadharmashreeji
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________________ 82 दिन तक प्रभु को वहीं रहना पड़ा / जब नीच गोत्र पूर्ण होने की, तैयारी थी तब इन्द्र म. ने अवधिज्ञान का उपयोग दिया / परमात्मा वीर प्रभु को 82 दिन तक देवानन्दा की कुक्षी में पकड़े रखने वाला सातवाँ कर्म गोत्र कर्म है | . प्रश्न- 153. गोत्र कर्म किसके समान है ? उत्तर- गोत्र कर्म कुम्भार के समान है / कुम्भार द्वारा बनाया गया अच्छा घड़ा घी, दूध आदि भरने के काम भी आता है / कई घड़े मंगल कलश के रूप में भी स्थापन किए जाते हैं / कुम्भार कई घड़े ऐसे भी बनाता है जिसमें मदिरा आदि भरी जाती है ऐसे घड़े लोक में निन्दनीय एवं तिरस्कार के पात्र बनते हैं तो कई अपमान-तिरस्कार वाले हल्के कुल में उत्पन्न होते हैं / प्रश्न- 154. ऊँच गोत्र कर्म का बन्ध कैसे होता है ? उत्तर- 1. गुणग्राही- दूसरों के गुणों को देखने वाला तथा दोषों की उपेक्षा करने वाला जीव ऊँच गोत्र बान्धता है / 2. मद रहित- जाति, कुल, ऐश्वर्य, लाभ, बल, रूप, तप और श्रुत (विद्या) युक्त होने पर भी अहंकार रहित जीव ऊँच गोत्र का बन्ध करता है। 3. पढ़ने-पढ़ाने की रूचि रखने वाला - पढ़ने वालों के प्रति हार्दिक बहुमान रखने वाला भी ऊँच गोत्र बान्धता है / 4. जिनेश्वर परमात्मा, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय, साधु, चैत्य, मात-पिता की भक्ति करने वाला ऊँच गोत्र बान्धता है। 5. स्वनिन्दा-परप्रशंसा करने वाले जीव ऊँच गोत्र बान्धते हैं / ऊँच गोत्र कर्म के उदय से जीव ऐश्वर्य, सत्कारादि से युक्त उत्तम जाति एवं उत्तम कुल में जन्म लेता है / 211