Book Title: Itihas ki Dharohar evam Karm Prashnottari
Author(s): Pragunashreeji, Priyadharmashreeji
Publisher: Pragunashreeji Priyadharmashreeji

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Page 219
________________ उत्तर प्रश्न- 141. नामकर्म के कुल कितने भेद है ? वर्णन करें / नामकर्म के कुल 103 भेद हैं / 1. पाँच प्रकार के शरीर जैसे औदारिक-वैक्रिय-आहारकतैजस-कार्मण ये भी नामकर्म के उदय से मिलते हैं / 2. नन्दन राजर्षि के भव में प्रभु महावीरस्वामीजी की आत्मा ने सभी जीवों के प्रति असीम करुणा का चिन्तन करते हुए तीर्थंकर नाम कर्म बान्धा यह इसी नामकर्म का भेद है / 3. पुत्र-पुत्री को माता-पिता हित की-भले की बात करते हैं, उस बात से माता-पिता के प्रति आदर बढ़ने की अपेक्षा अनादर भाव बढ़ जाता है तब सन्तान के प्रति तिरस्कार भाव पैदा करने की जरूरत नहीं है / अच्छी बात निःस्वार्थ भाव से कहने पर भी अपनी बात को कोई नहीं स्वीकारता इसमें अपना ही अनादेय नाम कर्म कारण है। 4. कई बार ऐसा भी होता है मित्रों के द्वारा अपने. अहित की बात भी स्वीकार कर ली जाती है उसी को सत्य मान लेते हैं इसमें उन मित्रों का आदेय नाम कर्म कारण है। 5. किसी का कण्ठ बहुत सुरीला होता है सुनना अच्छा लगता है तो समझे सुस्वर नाम कर्म कारण है | सुरीली आवाज होने पर भी दूसरों को अप्रिय लगे तो अपना दुःस्वर नाम कर्म का उदय समझें / 6. कई बार व्यक्ति कहता है कि पू. महाराज श्रीजी ! मैं अपने कुटुम्ब-परिवार के लिए कितनी तनतोड़ मेहनत करता हूँ / संघ-समाज-नगर के कार्य भी सम्भालता हूँ तो भी मुझे कोई यश नहीं मिलता उल्टा अपयश ही मिलता है क्या करूँ ? समझ नहीं 205

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