Book Title: Itihas ki Dharohar evam Karm Prashnottari
Author(s): Pragunashreeji, Priyadharmashreeji
Publisher: Pragunashreeji Priyadharmashreeji

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Page 215
________________ 3. स्तेयानुबन्धी- चोरी करने की तीव्र विचारणा / सतत उसी का परिणाम | 4. संरक्षणानुबन्धी- अमर्यादितपणे परिग्रह इकट्ठा करना / उसके रक्षा की सतत चिन्ता करना / मम्मण सेठ धन में तीव्र आसक्त बना तो नरकायु बान्धकर सातवीं नरक में गया / रात्रि भोजन-सात व्यसनों का सेवन करने से नरकगति में न जाना हो तो आज से उपरोक्त बातों में ब्रेक लगा देनी चाहिए / प्रश्न- 132. तिर्यंचगति बन्ध का मुख्य कारण क्या है ? उत्तर- रौद्रध्यान नरकगति का कारण है तो आर्तध्यान तिर्यंचगति का कारण है / वह भी चार प्रकार का है। 1. इष्टवियोग आर्तध्यान- जो वस्तु या व्यक्ति अपने को अच्छी लगती हो उसके चले जाने से शोक-संताप-आक्रन्दन करना / जैसे व्यापार में नुकसान हो जाने पर, पुत्र-पत्नी-माता की मृत्यु होने पर करुण विलाप करना / इसे आर्तध्यान कहते हैं | रूपसेन कुमार अपनी इष्ट सुनन्दा के वियोग से आर्तध्यान करने के कारण मरने के बाद सर्प, कौआ, हंस, हरिण हाथी आदि का अवतार लेना पड़ा / 2. अनिष्ट संयोग- जो वस्तु अपने को प्रिय न हो., अच्छी न लगती हो, वही वस्तु अपने पास आए जाए तो सारा दिन-रात यही विचारणा करते रहना कि यह कब दूर होगी ? ऐसा विचार अनिष्ट संयोग आर्तध्यान कहलाता है। 3. चिन्ता- शरीर में कोई रोग हो जाए अथवा कोई प्रसंग उपस्थित हो जाए तब जो चिन्ता होती है उसे चिन्ता आर्तध्यान कहते हैं / 4. निदान- भविष्य के सुख की चिन्ता करनी कि स्वयं द्वारा की 201

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