Book Title: Itihas ki Dharohar evam Karm Prashnottari
Author(s): Pragunashreeji, Priyadharmashreeji
Publisher: Pragunashreeji Priyadharmashreeji

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Page 216
________________ गई तपस्या आदि धर्माराधना के बदले परभव में सांसारिक फल की अपेक्षा रखना / नियाणा करना / यह भी निदान आर्तध्यान है / आर्तध्यान करने से तथा माया करने से भी तिर्यंचायु का बन्ध होता प्रश्न- 133. मनुष्यायु का बन्ध कैसे होता है ? उत्तर दान की रुचि वाला, अल्प परिग्रह वाला, अल्प कषायी, विनय, सरलता, नम्रता आदि गुणों से युक्त मनुष्यायु का बन्ध कर सकता प्रश्न- 134. देवायु का बन्ध कैसे होता है ? उत्तर- सम्यक्त्वी जीव, श्रावक जीवन जीने वाला, साधु जीवन का पालन करने से, दुःखों को सहने से, अनिच्छा से भी तपश्चर्या आदि करने से देवलोक की आयु का बन्ध होता है / देवगुरु की भक्ति करने वाला, धर्मश्रवण, सुपात्रदान देने वाला सामायिक आदि करने से भी देवायु का बन्ध होता है। प्रश्न- 15. आयुष्य कर्म किसके समान है ? उत्तर- आयुष्य कर्म बेड़ी के समान है / जैसे पुलिस चोरादि को पकड़कर बेड़ी पहनाकर जेल में डाल देती है / अपने अपराध की सजा भोगने के लिए मर्यादित समय तक जेल में रहना ही पड़ता है। वैसे ही आयुष्य कर्म आत्मा को पकड़कर शरीर रूपी जेल में डाल देता है / जब तक आयुष्य कर्म का समय पूरा नहीं होता तब तक आत्मा को शरीर में रहना पड़ता है। प्रश्न- 136. भगवान महावीरस्वामीजी ने गर्भ में अभिग्रह क्यों किया था ? जब तक माता-पिता जीवित रहेंगे दीक्षा नहीं लूँगा ? उत्तर- प्रभु महावीरस्वामीजी ने अपने अवधिज्ञान के बल से देख लिया था 202

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