Book Title: Itihas ki Dharohar evam Karm Prashnottari
Author(s): Pragunashreeji, Priyadharmashreeji
Publisher: Pragunashreeji Priyadharmashreeji
View full book text
________________ 2. प्रत्याख्यानीय माया- मार्ग में चलते बलद की टेढ़ी मूत्र रेखा (गोमूत्रिका) जैसे धूप आदि से समाप्त हो जाती है वैसे ही थोड़े प्रयत्न से यह माया नाश हो जाती है / 3. अप्रत्याख्यानीय माया- जैसे भेड़ का सींग बड़ी मुश्किल से, अनेक उपायों से सीधा किया जा सकता है वैसे ही यह माया महामुश्किल से दूर होती है / 4. अनन्तानुबन्धी माया- जैसे अतिकठिन टेढ़ा मेढ़ा बाँस का मूल अग्नि में जलाने पर भी अपनी वक्रता नहीं छोड़ता वैसे ही यह अनन्तानुबन्धी माया किसी भी उपाय से दूर नहीं हो सकती / प्रश्न- 110. अनन्तानुबन्धी आदि चार प्रकार का लोभ किस-किस के समान उत्तर लोभ अर्थात- मूर्छा-ममत्व-आसक्ति-असंतोष-परिग्रह वृत्ति-तृष्णाइच्छा-अभिलाषा-आकांक्षा || 1. संज्वलन लोभ- हल्दी समान-जैसे वस्त्र पर लगा हल्दी का दाग धूप के स्पर्शमात्र से उड़ जाता है वैसे ही यह लोभ प्रयत्न किए बिना ही शीघ्र नाश हो जाता है / 2. प्रत्याख्यानीय लोभ- दीपक की कालाश समान- जैसे दीपक की कालश वस्त्र को लग जाए तो साबुन पानी में वस्त्र डालने से कालश (मेष) दूर होती है वैसे ही यह लोभ थोड़े प्रयत्न से दूर होता है / 3. अप्रत्याख्यानीय लोभ- गाड़े की लगी कालश समान- वह कालश साबुन आदि लगाने से खूब-खूब रगड़ने से दूर की जा सकती है वैसे ही यह लोभ बहुत प्रयत्नों से शान्त होता है / 4. अनन्तानुबन्धी लोभ- मजिट्टा रंग समान- जैसे यह रंग वाला 189