Book Title: Itihas ki Dharohar evam Karm Prashnottari
Author(s): Pragunashreeji, Priyadharmashreeji
Publisher: Pragunashreeji Priyadharmashreeji
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________________ 3. अप्रत्याख्यानीय क्रोध- मिट्टी वाली पृथ्वी पर पड़ी रेखा समान कभी वर्षा आदि जोर से आए तो रेखा मिट सकती है वैसे ही यह कषाय मुश्किल से शान्त होता है / 4. अनन्तानुबन्धी क्रोध- पर्वत पर पड़ी रेखा समान / किसी भी प्रकार से यह क्रोध शान्त नहीं होता / यह क्रोध जिंदगी के अन्त तक रहता है / क्रोध-गुस्सा-द्वेष-आक्रोश-कलह-ईर्ष्या-आवेश पर्यायवाची नाम है / प्रश्न- 108. अनन्तानुबन्धी आदि चारों प्रकार का मान किस के समान है ? उत्तर मान अर्थात् गर्व-अहंकार-अभिमान-अक्कड़ता आदि / 1. संज्वलन मान- नतेर की लकड़ी समान, सरलता से झुक जाता 2. प्रत्याख्यानीय मान- काष्ट की सोटी समान, मुश्किल से झुकती 3. अप्रत्याख्यानीय मान- हड्डी-अस्थि के समान बहुत अधिक उपायों से महामुश्किल से दूर होती है / 4. अनन्तानुबन्धी मान- पत्थर के स्तम्भ समान सैंकड़ों उपाय करने पर भी यह मान दूर नहीं होता / प्रश्न- 109. अनन्तानुबन्धी आदि चार प्रकार की माया किस-किस के समान उत्तर माया अर्थात् कूड़-कपट-वक्रता-दम्भ आदि / 1. संज्वलन माया- जैसे आकाश में होने वाली इन्द्रधनुष की रेखा समान जल्दी नाश हो जाती है ऐसी ही संज्वलन माया शीघ्र समाप्त हो जाती है। 188