Book Title: Itihas ki Dharohar evam Karm Prashnottari
Author(s): Pragunashreeji, Priyadharmashreeji
Publisher: Pragunashreeji Priyadharmashreeji
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________________ उत्तर प्रश्न- 99. मोहनीय कर्म किस के समान है? मोहनीय कर्म मदिरा समान है / जिस प्रकार शराब पीने वाला व्यक्ति अपनी स्थिति-जात को भूल जाता है, माता को बहन, बहन को पत्नी, पत्नी को माता-बहन मानने लगता है / उसी प्रकार मोहनीय कर्म के उदय वाला जीव अपनी आत्मा के स्वभाव को भूलकर विभाव दशा-परभाव दशा में रमण करने लग जाता है / प्रश्न- 100. मोहनीय कर्म आत्मा के कौन से गुण को ढक देता है ? उत्तर- आत्मा का गुण है वीतरागता | नहीं किसी पर राग, न ही किसी पर द्वेष / आत्मा रूपी सूर्य के वीतरागता रूपी गुण के आगे मोहनीय कर्म रूपी बादल आ जाने से, आत्मा सिंह समान होते हुए भी कायर बन गया है / कभी रागी बनता है तो कभी द्वेषी / कभी क्रोध से आग बबूला हो जाता तो कभी अहंकार में अक्कड़ बन जाता है / कभी तो माया की मस्ती में खेलता है तो कभी-कभी लोभ के महासागर में डुबकी लगाता है / कभी-कभी खड़खड़ाहट हँसता है तो कभी जोर-जोर से रोने लग जाता है | कभी तो आनन्द में आकर झूमता है तो कभी शोकसागर में डूब जाता है / यह सब तूफान मोहनीय कर्म के हैं / सत्य को असत्य तथा असत्य को सत्य मानने लगता है | जो सच्चा वह मेरा ऐसी मान्यता होनी चाहिए उसके बदले जो मेरा वही सत्य ऐसा कदाग्रही बन जाता है / सभी सदगुणों को ढंकने वाला मोहनीय कर्म है / प्रश्न- 101. मोहनीय कर्म के कितने भेद हैं ? उत्तर मोहनीय कर्म के मुख्य दो भेद हैं / .. 1. दर्शन मोहनीय- परमात्मा की वाणी के प्रति श्रद्धा उत्पन्न न होने दे या उत्पन्न हुई श्रद्धा को शंका आदि द्वारा तोड़ने वाला कर्म वह दर्शन मोहनीय कहलाता है / इस के तीन भेद हैं / 184