Book Title: Itihas ki Dharohar evam Karm Prashnottari
Author(s): Pragunashreeji, Priyadharmashreeji
Publisher: Pragunashreeji Priyadharmashreeji

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Page 193
________________ निद्रा आए वह प्रचला उसका कारण प्रचला दर्शनावरणीय नाम का कर्म है। 8. प्रचला-प्रचलादर्शनावरणीय कर्म- चलते-चलते नींद का आना जैसे घोड़ा-ऊँट-बलद आदि उसका कारण प्रचला-प्रचलादर्शनावरणीय कर्म है। 9. थिणाद्धिदर्शनावरणीय कर्म- दिन में चिन्तन किए हुए कार्य को रात्रि में नींद-नींद में ही कर आना / तो भी स्वयं को ख्याल न आना सुबह जागने पर ऐसा लगे कि मुझे स्वप्न आया है / ऐसी निद्रा थिणाद्धि कहलाती है / प्रथम संघयण वाले जीव को नींद समय वासुदेव के बल से आधा बल बढ़ जाता है / वर्तमान काल में युवान पुरुष के बल से आठ गुणा बढ़ जाता है / ऐसा जीव मरने के बाद अवश्य नरक में जाता है / तीसरा कर्म - वेदनीय कर्म प्रश्न- 90. वेदनीय कर्म किसे कहते हैं ? उत्तर- आत्मा का सुख सदा टिकने वाला है / सुख-दुःख से मिश्रित नहीं है / आत्मा का सुख कभी भी दुःख लाने वाला नहीं है / उसका सुख स्वाधीन है / आत्मिक सुख की प्राप्ति के लिए किसी की सहायता की आवश्यकता नहीं होती परन्तु आत्मा रूपी सूर्य के सामने वेदनीय कर्म रूपी बादल आ जाने से आत्मा रूपी सूर्य का अव्याबाध नाम का गुण ढंक गया है जिस कारण जीवन सुखी-दुखी बनता रहता है / सुखी-दुखी करने वाला कर्म वेदनीय कर्म है / प्रश्न- 91. भौतिक सुख किसे कहते हैं ? उत्तर भौतिक यानि सांसारिक सुख ! सदैव टिकने वाले नहीं है / वह सुख-दुःख मिश्रित है / प्रत्येक सुख के पीछे दुःख रहा हुआ है | 179

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