Book Title: Itihas ki Dharohar evam Karm Prashnottari
Author(s): Pragunashreeji, Priyadharmashreeji
Publisher: Pragunashreeji Priyadharmashreeji
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________________ उत्तर प्रश्न- 29. समकित दृष्टि और मिथ्यादृष्टि की क्रिया में क्या अन्तर होता है ? मान लीजिए, किसी कारण झूठ बोलना पड़े या हिंसा करनी पड़ी तो दोनों की क्रिया में अन्तर होगा / सम्यग्दृष्टि जीव को हिंसा या झूठ बोलना ही पड़े तो वह क्रिया रस बिना, दुःखी मन से मुझे करना पड़ रहा है यह पाप है ऐसा समझकर करता है / मिथ्यादृष्टि जीव उसे हँसते हुए जानबूझ कर तथा पाप को समझे बिना करेगा जिससे उसके कर्म गाढ़ बंधेगे / मिथ्यादृष्टि जीव को कभी पाप के उदय से दुःख आ जाए तो घबरा जाएगा / यह दुःख कहाँ से आ गया / हाय-हाय करके भोगेगा / सम्यग्दृष्टि जीव पापोदय आने पर घबराता नहीं, कर्मों को शान्ति से भोगता है / वह समझता है कि मैंने पूर्वजन्म में किसी को दुःखी किया है इसीलिए दुःख आया है इस कारण शान्ति से भोगता है। सम्यग्दृष्टि को आर्तध्यान बहुत कम होता है चित्त में शान्ति और समभाव रहता है / जबकि मिथ्यादृष्टि को आर्तध्यान बहुत होता है / चित्त को शान्ति नहीं होती तथा राग-द्वेष की प्रबलता होती है / नए कर्मों को गाढ़ बांधता है। प्रश्न- 30. बन्धन और मुक्ति का कारण क्या है ? उत्तर- संसार में बन्धन और मुक्ति का कारण मन है। प्रश्न- 31. एक ही मन दोनों परिणाम कैसे लाता है ? उत्तर- मन एक ही है परन्तु कार्य दो करता है जैसे कि ताले की चाबी एक ही होती है उसी चाबी से ताला खोला भी जा सकता है और बन्द भी किया जा सकता है / वैसे ही मन की गति है / जब मन पाप की क्रिया में जुड़ता है तो कर्म बन्ध का कारण बनता है तथा जब 155