Book Title: Itihas ki Dharohar evam Karm Prashnottari
Author(s): Pragunashreeji, Priyadharmashreeji
Publisher: Pragunashreeji Priyadharmashreeji
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________________ रूप जान सकता है / इस कारण मिथ्याश्रुत सम्यक् रूप में परिणत. होता है। इसी प्रकार सम्यग्दृष्टि के रचे ग्रन्थ मिथ्यात्वी के हाथ में आ जाए तो सम्यक् श्रुत मिथ्याश्रुत बन जाएगा क्योंकि बुद्धि मिथ्या होने से। 7. सादि श्रुत- जिस श्रुत ज्ञान की आदि हो उसे सादि श्रुत कहते 8. अनादि श्रुत- जिस श्रुतज्ञान की आदि न हो वह अनादि श्रुत कहा जाता है। प्रश्न- 72. श्रुतज्ञान के शेष 6 भेदों का वर्णन समझाएँ ? उत्तर- 9. सपर्यवसित श्रुत- जिस श्रुत ज्ञान का अन्त होता हो उसे सपर्यवसित अर्थात् सान्तश्रुत भी कहते हैं / 10. अपर्यवसित श्रुत- जिस श्रुत ज्ञान का अन्त न होता हो उसे अपर्यवसित श्रुत या अनन्त श्रुत भी कहते हैं / 11. गमिक श्रुत- जिस शास्त्र में एक समान पाठ हों उन्हें गमिक श्रुत कहते हैं जैसे दृष्टिवाद नाम का बारहवाँ अंग | 12. अगमिक श्रुत- जिस शास्त्र में एक समान पाठ न हो उसे अगमिक श्रुत कहते हैं जैसे कालिक श्रुत / आचारंग-सूयगडांग आदि कालिक श्रुत कहे जाते हैं / 13. अंग प्रविष्ट श्रुत- श्री गौतमस्वामीजी आदि गणधर भगवन्तों द्वारा रची हुई द्वादशांग रूप जो श्रुत है वह अंग कहे जाते हैं / इन अंगों में रहा हुआ जो श्रुत है वह अंग प्रविष्ट श्रुत कहलाता है / 14. अंगबाह्य श्रुतः- गणधर भगवन्त के पश्चात् श्री भद्रबाहुस्वामीजी आदि स्थविर पुरुषों ने अवसर्पिणी काल में आयु-बल-बुद्धि क्षीण 171