Book Title: Itihas ki Dharohar evam Karm Prashnottari
Author(s): Pragunashreeji, Priyadharmashreeji
Publisher: Pragunashreeji Priyadharmashreeji
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________________ उत्तर 4. असंज्ञी श्रुत- दीर्घकालिकी संज्ञा बिना के जीवों को असंज्ञी कहा जाता है / असंज्ञी जीवों का जो श्रुतज्ञान वह असंज्ञी श्रुत कहा जाता है / मन वाले जीवों को संज्ञी कहते हैं तथा मन बिना के एकेन्द्रिय-विकलेन्द्रिय तथा असंज्ञी पंचेन्द्रिय जीवों को असंज्ञी श्रुत होता है। प्रश्न- 70. संज्ञा किसे कहते हैं ? वह कितने प्रकार की होती है ? किसी भी वस्तु को अच्छी तरह जानना संज्ञा कहलाता है / संज्ञा तीन प्रकार की होती है / 1. दीर्घकालिकी संज्ञा-दीर्घ-लम्बी, सोचने की, विचारने की शक्ति को दीर्घकालिकी संज्ञा कहते हैं / भूत-भविष्य-वर्तमान काल तीनों काल का विचार करने की शक्ति को दीर्घकालिकी संज्ञा कहते हैं / 2. हेतु वादोपदेशिकी संज्ञा- केवल वर्तमान काल का विचार करने की शक्ति को हेतुवादोपदेशिकी संज्ञा कहते हैं / 3. दृष्टिवादोपदेशिकी संज्ञा-विशिष्ट श्रुतज्ञान के बल से हेय उपादेय की प्रवृत्ति वाले, सम्यग्दृष्टि जीव की विचारणा को दृष्टिवादोपदेशिकी की संज्ञा कहते हैं। प्रश्न- 71. श्रुतज्ञान के चार भेदों का वर्णन समझाया, अब आगे के भेदों की व्याख्या करें ? उत्तर- 5. सम्यक् श्रुत- जो ग्रन्थ सम्यग्दृष्टि के रचे होते हैं उन्हें सम्यक् श्रुत कहते हैं / जैसे- आचारांग आदि / 6. मिथ्या श्रुत- जो ग्रन्थ मिथ्यादृष्टि द्वारा रचे होते हैं उन्हें मिथ्याश्रुत कहते हैं / मिथ्यात्वी के रचे हुए ग्रन्थ अगर सम्यक्त्वी के हाथ में आए तो मिथ्याश्रुत भी सम्यक् श्रुत बन जाता है / क्योंकि उनकी बुद्धि सम्यग् होने से सत्य को सत्य रूप और असत्य को असत्य 170