Book Title: Itihas ki Dharohar evam Karm Prashnottari
Author(s): Pragunashreeji, Priyadharmashreeji
Publisher: Pragunashreeji Priyadharmashreeji
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________________ स्व और पर को प्रकाशित करने वाला है / श्रुतज्ञान के बल से ही गणधर भगवन्त द्वादशांगी की रचना करते हैं / 1. श्रुतज्ञानी अरिहन्त परमात्मा की तरह ही व्याख्या करते हैं / जैसेकालिकाचार्यजी - आर्यरक्षितसूरिजी / 2. पाँचों ज्ञान में से श्रुतज्ञान ही बोलने वाला है / प्रश्न- 53. गणधर भगवान जो द्वादशांगी की रचना करते हैं, वह 12 अंग कौन-कौन से हैं ? उत्तर- 1. आचारांग सूत्र, 2. सूयगडांग सूत्र, 3. ठाणांग सूत्र, 4. समवायांग सूत्र, 5. विवाहपन्नति (भगवती) सूत्र, 6. ज्ञाता धर्मकथा सूत्र, 7. उपासगदशा सूत्र, 8. अंतकृतदशा सूत्र, 9. अनुत्तरोपपातिक सूत्र, 10. प्रश्न-व्याकरण सूत्र, 11. विपाक सूत्र, 12. दृष्टिवाद सूत्र | प्रश्न- 54. क्या यह 12 अंग अपने पास उपलब्ध हैं ? . उत्तर- अभी अपने पास 11 अंग उपलब्ध हैं। प्रश्न- 55. 12वें अंग का लोप कैसे हो गया ? पूर्वकाल में शास्त्र लिखे नहीं जाते थे / सभी साधु बारम्बार पुनरावर्तन करके याद रखते थे / शिष्यों को भी वाचना के द्वारा मौखिक पढ़ाया जाता था इसी प्रकार से श्रुतज्ञान आगे-आगे चलता था / एक बार ऐसी घटना घटित हुई कि 12 वर्षीय दुष्काल पड़ने से, शरीर को पोषण न मिलने से, स्मरण शक्ति-धारणा शक्ति कम हो जाने से साधु अनेक सूत्र भूलने लगे / सभी साधु दुष्काल पश्चात् एक स्थान पर एकत्रित हुए | जिसे जितना याद था उतना बोलने लगे / एक की भूल होती तो दूसरा बताता / इस प्रकार से श्रुतज्ञान उत्तर 165