Book Title: Itihas ki Dharohar evam Karm Prashnottari
Author(s): Pragunashreeji, Priyadharmashreeji
Publisher: Pragunashreeji Priyadharmashreeji
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________________ करमा शा ने बहादुर शा को कहा कि तुम चिन्ता क्यों करते हो आपको जितनी सम्पत्ति, रुपया-पैसा चाहिए आप ले लीजिए | उसके मना करने पर भी करमा शा ने उसे एक लाख रुपये बिना किसी शर्त के उसे दे दिया / इतना ही नहीं उसे अपने घर ले गया / उसका खूब स्वागत किया, कुछ दिन अपने घर पर रखा / जिससे बहादुर शा खूब प्रसन्न हो गया और बोला-ए प्रिय दोस्त करमा शा ! मैं जीवन भर तेरा अहसान नहीं भूल सकूँगा / करमा शा ने कहाऐसा मत बोलिए, आप तो हमारे मालिक हैं, हम आपके सेवक हैं, बस कभी-कभी आप हम जैसे सेवकों को भी स्मरण करते रहना / केवल हमारी आप से एक ही अरजी है कि जब आप राज्य के मालिक बादशाह बनें तब मुझे शत्रुञ्जय तीर्थ का उद्धार करने की इजाजत देना / - बहादुर शा ने उसी समय शत्रुञ्जय उद्धार करने का वचन दे दिया और वहाँ से अन्यत्र स्थान की ओर प्रयाण कर दिया / रास्ते में ही उसे मुजफ्फर बादशाह की मृत्यु का तथा उसकी गद्दी पर बैठने वाले उसके पुत्र सिकन्दर की मृत्यु का भी समाचार मिल गया / क्षणमात्र का भी विलम्ब किए बिना बहादुर शा शीघ्र गुजरात पहुँच गया और वि. सं. 1583 श्रावण सुदी चौदस के दिन वह चांपानेर की राजगद्दी पर आरुढ़ हो गया / अपनी साहसिकता तथा बुद्धि प्रतिभा से उसने अनेक राजाओं को परास्त कर दिया / पूर्वावस्था में जिस-जिस व्यक्तियों ने उसकी सहायता की थी उन सभी को बुलाकर योग्य सत्कार किया / अपने ऊपर निःस्वार्थ उपकार करने वाले करमा शा को बुलाने के लिए अपना फरमान लिखकर दूत को भेजा / तीर्थोद्धार की प्रतीक्षित घड़ियाँ चित्रकूट में कर्मा शा चिन्तामणि महामन्त्र की आराधना कर रहा था / शत्रुञ्जय उद्धार की राह देख रहा था / इतने में उसके आंगण में गुजरात से निमन्त्रक आया उसने कहा- बादशाह बहादुर शा आपको याद कर रहा है और आपके द्वारा किए हुए उपकार का बदला चुकाना चाहता है | सुनते ही करमा शा पल मात्र का विलम्ब किए बिना हीरा, मोती, माणेक, रेशमी वस्त्र आदि 113