Book Title: Itihas ki Dharohar evam Karm Prashnottari
Author(s): Pragunashreeji, Priyadharmashreeji
Publisher: Pragunashreeji Priyadharmashreeji
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________________ राणकपुर तीर्थ के निर्माता धन्य हैं धरणा शा राजस्थान की भव्य भूमि पर सादड़ी शहर के समीपवर्ती प्रदेश में, देवलोक के नलिनी गुल्म विमान के समान राणकपुर तीर्थ में बने हुए गगनचुम्बी मन्दिर दुनिया में अजोड़ एवं बेजोड़ हैं / जिसमें 1444 स्तम्भ लगे हुए हैं / प्रत्येक स्तम्भ के पास खड़े रहने से परमात्मा के दर्शन होते हैं | आदिनाथ दादा की चौमुखी प्रतिमा मन और नेत्रों को आह्लादित करने वाली है। इस मन्दिर का निर्माण किया था एक जैन श्रावक धरणा शा पोरवाल ने / जिसका जीवन बिल्कुल सादा और सिम्पल था / जीवन में प्रदर्शन का नामोनिशान भी नहीं था / 32 वर्ष की युवावस्था में उसने 99 करोड़ सोना मोहरों को खर्च करके दीपा नामक शिल्पी से इस मन्दिर का निर्माण करवाया था / मन्दिर का निर्माण करने के पश्चात् एक दिन शिल्पी दीपा ने कहा- सेठजी ! मैं मन्दिर में आपकी मूर्ति लगाना चाहता हूँ | सेठ के मना करने पर भी शिल्पी नहीं माना / अन्त में सेठ ने कहा- यदि तू लगाना ही चाहता है तो ऐसी जगह लगाना जहाँ से मैं परमात्मा को देखता रहूँ और परमात्मा मुझे देखते रहें / दीपा शिल्पी ने अपनी बुद्धि से उस युवक को ऐसे ही सुन्दर स्थान पर स्थापित किया / 560 वर्ष व्यतीत हो जाने के बाद आज भी धरणा की यशोगाथा राणकपुर मन्दिर के साथ जुड़ी हुई है। __ धूमधाम पूर्वक राणकपुर की प्रतिष्ठा हो जाने के बाद तुरन्त ही शत्रुञ्जय तीर्थ का छ:री पालित यात्रा संघ निकाला / जिसमें सैकड़ों की श्रमण-श्रमणी तथा हजारों यात्रिक थे / संघपति थे धरणा शा सेठ / स्थान-स्थान पर तीर्थों में, नगरों में दान का प्रवाह बहाते हुए चतुर्विध संघ की भक्ति करते संघपति दिन प्रतिदिन आगे-आगे बढ़ रहे थे / चलते-चलते जिस दिन संघ ने पालीताणा में प्रवेश किया उसी दिन भारत के विविध स्थलों से प्रयाण किए हुए दूसरे 20 (बीस) छःरी पालित संघों ने भी प्रवेश किया / 130