Book Title: Itihas ki Dharohar evam Karm Prashnottari
Author(s): Pragunashreeji, Priyadharmashreeji
Publisher: Pragunashreeji Priyadharmashreeji
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________________ श्रीमती दीवालीबहन स्वयं लामण दीवा हाथ में लेकर चली थी / विक्रम सम्वत् 1885 माहं सुदी छ? के दिन प्रभुजी को गादीनशीन किया था / प्रतिष्ठा के पश्चात् सेठ ने अनेक यात्रियों के साथ कोर्ट से भायखला तीर्थ की 99 पदयात्रा की थी / __सेठ ने सोचा मेरे जीवन का भरोसा नहीं है / मुझे पालीताणा में भी एक टूक बनानी है / ऐसा विचार करके धनार्क कमूरता होने पर भी रामजी भाई सोमपुरा के मना करने पर भी सेठ ने भावोल्लास में आकर मन्दिर का शिलान्यास कर दिया / मृत्यु से पहले मेरे धन का सदुपयोग हो जाए इसके लिए प्रतिदिन पालीतीन ट्रॅक में निर्माण के लिए 1100 शिल्पी तथा 3000 (तीन हजार) मजदूर काम में लगा दिए | उस समय मजदूर को केवल एक आना (10 पैसे) मजदूरी देते थे / उस समय कुल खर्च नव (9) लाख सात सौ रुपये हुआ था / सात वर्ष तक अविरल गति से काम चलता रहा / इसी बीच सेठ की तबीयत अस्वस्थ होने के कारण शीघ्र ही प्रतिष्ठा का मुहूर्त वि. सं. 1893 माह सुदी दसमी को अञ्जनशलाका का तथा माह वदी दूज को प्रतिष्ठा का दिन निश्चित हो गया / सेठ एक वर्ष पूर्व ही प्रतिष्ठा की तैयारियाँ करने लग गया / परन्तु पर्युषण के दिनों में सेठ की तबीयत अधिक बिगड़ गई / अधिक तबीयत खराब होने पर सेठ ने सभी सम्बन्धियों को बुलाकर कह दिया कि यदि मैं दुनिया से चला जाऊँ तो आप कोई शोक नहीं करना, प्रतिष्ठा का मुहूर्त नहीं बदलना, प्रतिष्ठा में कोई कमी नहीं आने देना / सभी को सुविधा देकर क्षमापना करके वि. सं. 1892 भाद्रवा सुदी एकम रविवार महावीर जन्मवाँचन के दिन प्रभु स्मरण करते-करते सेठ ने प्राण छोड़ दिए / उस समय सेठ की उम्र केवल 54 वर्ष की थी। सेठ की आज्ञानुसार उसके गोद में लिए हुए सुपुत्र खेमचन्द ने पालीताणा जाकर धूमधाम से प्रतिष्ठा महोत्सव किया / चालू महोत्सव में सेठानी दीवालीबहन का भी देहान्त हो गया / जाते-जाते उसने भी कह दिया कि प्रतिष्ठा बन्द नहीं करना, मैं तो सेठ को समाचार देने जा रही हूँ कि प्रतिष्ठा महोत्सव अच्छी तरह हो रहा है / प्रतिष्ठा धूमधाम से सम्पन्न हुई / आज भी पालीताणा में मोती शा 143