Book Title: Itihas ki Dharohar evam Karm Prashnottari
Author(s): Pragunashreeji, Priyadharmashreeji
Publisher: Pragunashreeji Priyadharmashreeji

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Page 150
________________ उत्तर दूं समझ नहीं आ रहा था, परन्तु तुरन्त दूसरे ही क्षण सेठ स्वस्थ हो गए आखिर सेठ तो वाणिया ही थे, वाणिया लोग बुद्धि के बड़े चतुर होते हैं। सेठ वायसराय को कोई भी उत्तर न देकर नगाड़े को अपने मस्तक पर उठा लिया / तत्पश्चात् वायसराय को कहा- साहेब ! क्या इसी प्रकार चमड़े के बूटों को कोई व्यक्ति मस्तक पर उठा सकता है ? वायसराय ने कहानहीं / सेठ ने कहा- यदि नहीं तो दोनों वस्तु चमड़े की होने पर भी दोनों में अन्तर तो है ही / सेठ की कुशाग्र बुद्धि पर वायसराय आश्चर्यचकित हो गया / उसने हाजर जवाबी बुद्धि की बहुत प्रशंसा की और सम्मेतशिखर तीर्थ के विवाद को वहीं पर समाप्त कर दिया / जिनशासन की जयकार हुई / तीर्थ की सुरक्षा हुई। गंगा माँ को सभी समाचार सतत मिलते रहते थे / बेटा सरस पराक्रम करके जब घर आया तो गंगा माँ ने उसे खूब वात्सल्य दिया और लालभाई को लापसी का मंगलं भोजन कराया तथा उसके इस कार्य की खूब-खूब प्रशंसा की / ऐसी थी गंगा माँ जिसके जीवन में भीम और कान्त दोनों ही गुण थे, ऐसा था बेटा लालभाई जो माँ का आज्ञांकित पुत्र था / ममता की माँ मूरति, समता की पहचान | माँ ने ही पैदा किये, तीर्थंकर भगवान || तीर्थंकर भगवान, देव गुण माँ का गाते / क्षमा-प्रेम-दुलार-उदारता इसमें पाते || ऋण न उतरे माँ का, 'पारदर्शी' सच कहता / माँ की सेवा करो, मिलेगी तुमको ममता || 137

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