Book Title: Itihas ki Dharohar evam Karm Prashnottari
Author(s): Pragunashreeji, Priyadharmashreeji
Publisher: Pragunashreeji Priyadharmashreeji
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________________ गंगा माँ ने कहा- बेटा ! यदि मेरा लाल वहाँ नहीं जा सकता ऐसी परिस्थिति में हैं तथा यदि उसे पवित्र तीर्थ से भी अपना पाँव अधिक प्रिय है तो उसके स्थान पर मुझे ही जाना चाहिए, इसमें दूसरा कोई विकल्प नहीं है और बेटा मैं निश्चित ही जाऊँगी / ___ माँ की दृढ़ भावना को देखकर लालभाई सेठ माँ के चरणों में गिर गया .. और बोला- माँ ! आपने मेरे जीवन में उत्साह जोश भर दिया है अब तो मैं स्वयं ही शिखरजी जाऊँगा / मैं किसी को भी जाने नहीं दूंगा | माँ को प्रणाम किया, आशीर्वाद लिया और चल पड़ा शिखरजी तीर्थ की सुरक्षा हेतु वायसराय को मिलने के लिए। वायसराय और सेठ लालभाई ने परस्पर चर्चा विचारना की और दोनों शिखरजी के पहाड़ पर जब चढ़ने लगे तो पहाड़ पर चढ़ने से पूर्व बूट उतारने का सवाल आया / सेठ के साथ कलकत्ता जैन संघ के प्रमुख बाबू साहेब भी थे / सेठ लालभाई सोचने लगे कि वायसराय को कैसे कहूँ कि आप चमड़े के बूट उतार दीजिए / उसी समय अति कुशलता और शीघ्रता से कलकत्ता के बाबू साहेब ने वायसराय के पाँवों के पास बैठकर उसके चमड़े के बूट उतार कर केनवास के बूट पहनाने की कोशिश की / यह देख वायसराय लज्जित हो गया / उसने सोचा कि जैन धर्म के विधिविधान को मुझे मान सम्मान देना ही चाहिए और इस धर्म के अनुसार ही मुझे इनके साथ पहाड़ पर चढ़ना चाहिए, उसने स्वयं ही अपने चमड़े के बूट उतार दिए और दूसरे बूट पहन लिए / सभी वार्तालाप करते-करते पहाड़ पर चढ़ गए | जब वायसराय मन्दिर के पास पहुंचे तो उसने मन्दिर के भीतर नोबत और नगाड़े को पड़ा हुआ देखा / उसने तुरन्त सेठ को पूछा- जैसे बूट चमड़े के हैं वैसे यह नगाड़ा भी तो चमड़े का है आप दो बातें क्यों करते हो ? मेरे बूट तो पहाड़ पर चढ़ने से पहले उतरा दिए और यह नगाड़ा ढोलक आदि सभी मन्दिर के अन्दर रखते हो ! यह सुनकर एक क्षण के लिए तो सेठ चुप हो गए कि वायसराय को क्या 136