Book Title: Itihas ki Dharohar evam Karm Prashnottari
Author(s): Pragunashreeji, Priyadharmashreeji
Publisher: Pragunashreeji Priyadharmashreeji
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________________ की / इस चमत्कार ने प्रभु में प्रभुत्व प्रकट होने की प्रतीति करा दी / शुभ घड़ी में प्रभु की प्रतिष्ठा हुई / लोगों ने जय-जयकार के नारे लगाए / तत्पश्चात् आचार्य भगवन ने श्री पुण्डरीकस्वामीजी की, रायण पादुका की प्रतिष्ठा कराई / स्वर्ण कलश की, ध्वजा दण्ड की प्रतिष्ठा कराके जिनधर्म जिनशासन की पताका को लहराया / जब दादा की पलाठी के नीचे नाम लिखने का प्रसंग आया तब आचार्यप्रवर श्री विद्यामण्डनसूरिजी ने स्पष्ट शब्दों में मना कर दिया / केवल मात्र इतना ही लिखा कि 'सूरिभिः प्रतिष्ठितम्' ऐसे त्यागी, तपस्वी, नि:स्पृही महात्मा के कर-कमलों से प्रभु की प्राण प्रतिष्ठा हुई / आज भी दादा की पलाठी में इतना लेख मौजूद है। जिनालय में प्रत्येक उपयोगी वस्तु आरती, मंगल दीपक, छत्र, चामर, स्थ, चन्द्रवा, कलश आदि सभी उपकरण करमा शा ने दिए / महोत्सव में आने वाला प्रत्येक साधु-साध्वी एवं व्यक्ति प्रसन्न था / सभी लोग करमा शा को धन्यवाद दे रहे थे और करमा शा भी स्वयं को धन्य मानता था कि देव-गुरु की कृपा से मुझे ऐसा लाभ मिला / सकल संघों ने करमा शा को वधामणी दी, पू. विद्यामण्डनसूरिजी ने करमा शा के ललाट में विजय का सूचक संघपति तिलक किया तथा इन्द्र माला पहनाई / करमा शा ने खुले हाथों याचकों को दान दिया / रात-दिन देखे बिना जिन शिल्पियों ने जिनबिम्ब बनाया / उनका तथा उनके परिवार का सोने की जनोई, कुण्डल, मुद्रिका, कंकण आदि आभूषणों से तथा रेशमी वस्त्रों से बहुमान किया / उदार दिल से साधर्मिक भक्ति का लाभ लिया / निरन्तर आहार पानी, वस्त्र, औषध, पुस्तक आदि से साधु-साध्वीजी भगवन्त की भक्ति की। इस प्रकार करमा शा ने शत्रुञ्जय तीर्थ का उद्धार किया और वस्तुपाल द्वारा रखी हुई शिला से मूर्ति का निर्माण कराया / वर्तमानकाल में वही दादा की मूर्ति की पूजा प्रभु भक्तों के द्वारा हो रही है / दादा की मूर्ति चमत्कारी 120