Book Title: Itihas ki Dharohar evam Karm Prashnottari
Author(s): Pragunashreeji, Priyadharmashreeji
Publisher: Pragunashreeji Priyadharmashreeji
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________________ देखो / यह बिजली, आँधी, तूफान, जल अथवा वज से भी अभेद्य है और महाप्रभाविक है अतः इस प्रतिमा को ग्रहण करो / इतना कह कर देवी ने 12 योजन तक प्रकाशित होने वाले तेजोमय मण्डल को अपनी दिव्य शक्ति से खींचकर सामान्य पाषाण के समान प्रतिमा बनाकर कहा- हे रतन ! अब तुम इस मूर्ति को कच्चे सूत के तार से बान्धकर आगे-पीछे या बाजू में देखे बिना शीघ्रातिशीघ्र ले जाओ / यदि मार्ग में कहीं पर भी आराम करोगे तो . यह मूर्ति वहाँ पर ही स्थिर हो जाएगी / इतनी सूचना देकर देवी स्वस्थान पर चली गई। अम्बिका देवी की असीम कृपा से प्राप्त प्रतिमा को लेकर रत्न श्रावक देवी के आदेशानुसार इधर-उधर देखे बिना अस्खलित गति से कच्चे तार से बान्धे हुए जिनबिम्ब को लेकर चलता-चलता जिनालय के मुख्य द्वार पर पहुँच गया वहाँ पर आकर विचार करने लगा पहले मैं अन्दर जाकर लेप्यमयी प्रतिमा को हटाकर भूमि की सफाई कर लूँ / तत्पश्चात् नूतन जिन बिम्ब को वहाँ पर पधराऊँगा / ऐसा सोचकर वह प्रतिमा को वहाँ पर ही रखकर अन्दर गया / सफाई आदि करके जैसे ही बाहर आकर नूतन प्रतिमा को उठाने का प्रयास किया कि वह प्रतिमा उठी ही नहीं उसी स्थान पर मेरू की तरह अचल बन गई / चिन्तातुर होकर रत्न श्रावक ने पुनः चारों प्रकार के आहार पानी का त्याग कर दिया और अम्बिका देवी की आराधना में मग्न बन गया / निरन्तर सात दिन के उपवास पश्चात् अम्बिका देवी ने पुनः प्रगट होकर कहा- हे वत्स ! मैंने तुम्हें पहले ही कहा था कि कहीं पर विराम किए बिना ही इस बिम्बं को ले जाकर पधरा देना / अब यह प्रतिमा यहाँ से नहीं उठेगी / अब तुम इस प्रतिमा को यथावत् रखकर पश्चिमाभिमुख द्वार वाला प्रसाद बनवाओ और इस तीर्थ का उद्धार करो इस कार्य में विलम्ब मत करो / इतना कह कर देवी अन्तर्ध्यान हो गई / रत्न श्रावक ने देवी की सूचनानुसार पश्चिमाभिमुख प्रासाद बनवाया और सकल संघ के साथ हर्षोल्लास पूर्वक प्रतिष्ठा महोत्सव कराया / आचार्य भगवन्तों ने सूरि मन्त्र के पदों द्वारा देवताओं को आकर्षित करके बिम्ब और चैत्य को 126