Book Title: Itihas ki Dharohar evam Karm Prashnottari
Author(s): Pragunashreeji, Priyadharmashreeji
Publisher: Pragunashreeji Priyadharmashreeji
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________________ अधिष्ठायक से युक्त किया / रत्न श्रावक ने जिनशासन की गगनचुम्बी ध्वजा को लहराया / उदारता पूर्वक दानादि देकर श्री नेमीनाथ प्रभु की स्तुति की / भाव विभोर होकर नेमीनाथ प्रभु को रोमाञ्चित देह से अपलक नेत्रों से निहारता रहा / उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर अम्बिका देवी तथा क्षेत्रपाल देवता ने आकर उसके गले में पारिजात के फूलों की माला पहनाई / तत्पश्चात् रत्न श्रावक ने सातों क्षेत्रों में अपनी सम्पत्ति का बीजारोपण करके अपने जन्म को सफल किया / प्रसन्न मन से अपने स्थान पर जाकर धर्म ध्यान में निमग्न रहकर जीवन-यापन करने लगा / शास्त्रकार कहते हैं कि तीर्थ का उद्धार करने वाला रत्न श्रावक परम्परा से मोक्ष पद को शीघ्र ही प्राप्त करेगा / नाणेण जाणइ भावे, दंसणेण य सद्धहे / चरित्तेण णिगिण्हाइ, तवेण परिसुज्झइ // उत्तराध्ययन ज्ञान से वस्तु के स्वरूप को समझा जाता है, दर्शन से श्रद्धा होती है, चारित्र के द्वारा आश्रव को रोका जाता है तथा तप के द्वारा पूर्व काल में उपार्जित कर्मों का क्षय किया जाता है / 127