Book Title: Itihas ki Dharohar evam Karm Prashnottari
Author(s): Pragunashreeji, Priyadharmashreeji
Publisher: Pragunashreeji Priyadharmashreeji
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________________ अनेक मूल्यवान वस्तुओं को भेंट लेकर बादशाह के पास चांपानेर (पावागढ़) पहुँच गया / करमा शा के राज दरबार में दाखिल होते हुए बहादुर शा उससे मिलने के लिए उठ कर सामने दौड़ा, दोनों हाथों से करमा शा का आलिंगन किया तथा उसे उचित आसन पर बिठाकर राज्यसभा के समक्ष उसके परोपकार की प्रशंसा. करता हुआ बोला- यह मेरा परम दोस्त है, दुर्भाग्य ने जब मुझे बुरी तरह से मजबूर किया था तब इसी दयालु आदमी ने मेरा छुटकारा कराया था / बादशाह आगे कुछ कहे कि बीच में ही करमा शा ने कहा कि बादशाह सलामत ! क्षमा कीजिए, इतना भारी बोझ मेरे शरीर पर मत डालो, मैंने तो आपका कुछ भी नहीं किया, मैं तो आपका सेवक हूँ / तत्पश्चात् करमा शा ने विविध प्रकार की भेंट राजा को प्रदान की / राजा ने भी वस्त्र अलंकार, ताम्बुल आदि से उसका स्वागत किया और उसे कुछ दिन ठहरने का आग्रह किया / करमा शा ने बादशाह के आग्रह को स्वीकार किया / बादशाह ने उसके ठहरने के लिए सुन्दर शाही महल, भोजन तथा दास दासियों की सुन्दर व्यवस्था कर दी / थोड़े दिन करमा शा वहाँ पर ही रहा / एक दिन बादशाह पहले ग्रहण की हुई राशि लेकर करमा शा को वापिस देने के लिए आया / करमा शा ने इन्कार करते हुए कहा- मित्र ! मेरा जो कुछ भी है, वह सब आपका ही है, यह राशि भी मेरी नहीं- आपकी ही है / मैं इसे बिल्कुल वापिस नहीं लूँगा / बहुत ज्यादा मना करने पर भी जब बादशाह नहीं माना तब करमा शा ने उसे लेकर उदार हृदयं से उसे भी धर्म कार्य में व्यय करने का संकल्प किया / करमा शा को देखकर बारम्बार प्रमुदित होकर एक बार बादशाह ने कहामित्र करमा शा ! मेरे दिल की खुशी के लिए तुम मुझसे कुछ माँगो, कहो तो मैं अपने राज्य का एक समृद्ध देश आपको भेंट रूप में दूँ, तुम उसे स्वीकार करो | करमा शा ने कहा- बादशाह ! आपकी कृपा से मेरे पास सब कुछ है, कोई भी कमी नहीं है / मेरी तो मात्र एक ही इच्छा है जो कि आपके चित्तौड़गढ़ 114