Book Title: Itihas ki Dharohar evam Karm Prashnottari
Author(s): Pragunashreeji, Priyadharmashreeji
Publisher: Pragunashreeji Priyadharmashreeji
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________________ में रहे हुए, आचार्य भगवन, मुनि महाराज भी सिद्धाचल की तरफ विहार करने लगे / देश देशान्तरों से शिल्पज्ञ भी वहाँ पर पहुँच गए / उपाध्याय विनयमण्डनजी भी अपने विशाल साधु-साध्वीजी के परिवार सहित खम्भात से विहार करके पालीताणा पहुँच गए / गुरुदेव के आगमन से करमा शा का उत्साह द्विगुणा हो गया / शुभ दिन गुरु महाराज तथा सूत्रधारों के साथ करमा शा गिरिराज पर गया / मुगलों के द्वारा तीर्थ की स्थिति को देखकर उसका दिल द्रवित हो गया / दादा के दरबार में प्रवेश करके देखा कि खण्डित मस्तक ही पबासन पर पूजा जाता है / पत्थरों के टुकड़े चारों तरफ बिखरे पड़े हैं, बहुत सारे शिखर ध्वस्त हो चुके हैं / यह सब देखकर करमा शा की आँखों से श्रावण-भाद्रवा के समान जल धारा बहने लगी / गुरु महाराज ने उसे आश्वासन देकर कहाअब हताश और निराश होने से काम नहीं चलेगा, नयनों से आँसू बहाने से कुछ नहीं बनेगा, अब तो नया सर्जन करने के लिए शीघ्र ही सभी कार्य में लग जाओ / सर्वप्रथम नया जिन बिम्ब भराने के लिए वस्तुपाल के द्वारा रखी हुई शिलाओं को बाहर निकालो और परमात्मा का बिम्ब बनाने का कार्य चालू कराओ। गुरु भगवन के आदेश को प्राप्त करके समस्त श्री संघों की सम्मति लेकर शिलाओं की खोज चालू की गई / शिलाएँ कहाँ पड़ी हैं इसकी जानकारी मात्र एक समरा नाम के पुजारी को ही थी / उसे बुलाकर गुप्त रूप से पूछा गया / संघ की सम्मति लेकर पुजारी ने गुप्त भोयरा दिखाकर कहा कि वर्षों पहले वस्तुपाल मन्त्री ने यहाँ पर शिलाएँ रखी थी / अब जैसा संघ को योग्य लगे वैसा कीजिए / गुरु भगवन्त के आदेश से शिलाएँ बाहर निकाली गईं / शत्रुञ्जय नदी के शुद्ध जल से उनका अभिषेक किया गया, अष्टप्रकारी द्रव्य से पूजन किया / शिल्पी सूत्रधारों के हाथों में मीण्डल बान्धा, कुम्कुम् का तिलक किया और पुरस्कार देकर उनका सम्मान किया / शिल्पियों ने अपने ओजारों का प्रक्षाल किया / उस पर ग्रीवासूत्र बान्धकर पूजा की, घण्टनाद किया गया / उपाध्यायजी महाराज ने शिलाओं पर मन्त्रित वासक्षेप डाला, तत्पश्चात् शिल्पियों 117