Book Title: Itihas ki Dharohar evam Karm Prashnottari
Author(s): Pragunashreeji, Priyadharmashreeji
Publisher: Pragunashreeji Priyadharmashreeji
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________________ (मुसलमानों के क्रूर जुल्मों से हिन्दू थर-थर काँपने लगे / सत्ता के बल से वे हिन्दुओं को मुसलमान बनाने लगे / ) दादा की मूर्ति के खण्डित होने का समाचार चारों तरफ फैल गया / कुछ प्रभु भक्त चुपचाप पीछे के मार्ग से पहाड़ पर गए और वहाँ की हालत को देखकर आँखों से आँसू बहाने लगे / मन को दृढ़ करके उन्होंने सैकड़ों टुकड़ों को एकत्रित किया / उसी टुकड़ों के बीच में उनको दादा का मस्तक मिल गया / चारों तरफ के कचरे से दूर करके लोगों ने पबासन के ऊपर दादा के मस्तक को पधार दिया / जब कभी कोई यात्री आते तो ऊपर जाकर दादा के मस्तक का दर्शन करते, केसर, चन्दन, पुष्प आदि से उनकी पूजा करते और नयनों से आँसू बहाते-बहाते नीचे उतरते / जैन संघ के सभी श्रावक व्यथित थे / परन्तु किसी को कोई भी मार्ग नहीं सूझ रहा था / ऐसी परिस्थिति लगभग सौ (100) वर्ष तक चली / सभी लोग चातक की भाँति तीर्थोद्धार की राह देख रहे थे कि कोई माई का लाल पैदा हो और मुस्लिम बादशाहों से मैत्री करके जीर्णोद्धार करावे / उस समय श्री धर्मरत्नसूरिजी महाराज मारवाड़ में विचरण कर रहे थे / तब श्रेष्ठीवर्य धनराजजी ने आचार्य श्री धर्मरत्नसूरिजी की निश्रा में छ:री पालित यात्रा संघ निकाला / संघ सहित आचार्य भगवन आबू, अचलगढ़ आदि तीर्थों की यात्रा करते हुए वीर भूमि मेवाड़ में पहुँचे / वहाँ से चित्तौड़गढ़ में प्रवेश किया / उस समय तीन लाख अश्वों के स्वामी संग्रामसिह का सूर्य चित्तौड़ के तख्त पर तप रहा था / वहाँ पर ही महाराजा आम के संतानीय कपड़े के व्यापारी तोला शा सेठ भी रहते थे / उसकी लीलावती नाम की धर्मपत्नी थी / उसके छ: (6) पुत्र थे / उनके नाम थे- रत्ना शा, पोमा शा, गणा शा, दशरथ, भोज, करमा शा तथा एक पुत्री थी नाम था सुहविदेवी / आचार्य श्री धर्मरत्नसूरिजी के आगमन का समाचार सुनकर तोला शा अपने पुत्रों सहित गुरु को वन्दन करने के लिए गया / गुरु को वन्दन करके सुखशाता पूछकर उनके पास बैठा और पूछने लगा कि गुरुदेव ! मेरे मन की 109