Book Title: Itihas ki Dharohar evam Karm Prashnottari
Author(s): Pragunashreeji, Priyadharmashreeji
Publisher: Pragunashreeji Priyadharmashreeji
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________________ 'तीर्थनी आशातना नवी करिए तीर्थ की आशातनाओं से बचें अन्ये स्थाने कृतं पापं, तीर्थस्थाने विनश्यति / तीर्थस्थाने कृतं पापं, वजलेपो भविष्यति / / अन्य स्थानों पर किए गए पाप तीर्थ स्थानों पर आकर आराधना करने से, यात्रा करने से नष्ट हो जाते हैं / अतः तीर्थ स्थानों में आकर किए पाप तो वजलेप के समान हो जाते हैं / अतः तीर्थ स्थानों में जाकर मर्यादा का सम्पूर्ण पालन करना चाहिए / शत्रुञ्जय गिरिराज की महिमा तो मेरू पर्वत के समान है / जब आप तीर्थयात्रा करने जाते हो तब आपके मन-मस्तिष्क में सतत यह ध्यान रहना चाहिए कि हम तीर्थ स्थान में आए हैं / यहाँ पर हम संसार-सागर से तिरने के लिए आए हैं, डूबने के लिए नहीं / यहाँ पर कर्म तोड़ने के लिए आए हैं, कर्म बान्धने के लिए नहीं / अन्तःकरण में यह रखना चाहिए कि यह तीर्थ स्थान है, हिल स्टेशन नहीं / वर्तमानकाल में जितनी सुविधाएँ बढ़ गई हैं उतना ही उनका दुरुपयोग भी बढ़ गया है / वेकेशन के दिनों में तीर्थों में आए हुए लोग स्वेच्छाचारी तथा स्वछन्द ही दिखाई देते हैं / कई लोग तो यात्रा के बहाने मौज-मजा ही करने आते हैं अथवा तबीयत सुधारने के लिए आते हैं / प्रिय बन्धुओं ! याद रखनातीर्थ स्थानों में तीर्थयात्रा के आशय को छोड़कर अन्य भावों को मन में लाना मानो दुर्गति को निमन्त्रण देना है | शत्रुञ्जय, गिरनार, सम्मेतशिखर, राजगृही, हस्तिनापुर, अयोध्या, पावापुरी आदि -आदि कल्याणक भूमियाँ तीर्थंकरों की चरणरज से पवित्र बनी हुई हैं / यह अचिन्त्य प्रभावशाली तीर्थ है / इन तीर्थों पर जाकर आशातनाओं से अवश्य बचना चाहिए / 68