Book Title: Itihas ki Dharohar evam Karm Prashnottari
Author(s): Pragunashreeji, Priyadharmashreeji
Publisher: Pragunashreeji Priyadharmashreeji
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________________ दण्डवीर्य राजा की खूब प्रशंसा की तथा कहा कि आप भी भरत के वंशज हो अतः आप भी शत्रुञ्जय तीर्थ की यात्रा करो और उद्धार करो / मैं इस महान कार्य में तुम्हारी सहायता करूँगा / इन्द्र की बात को मान कर दण्डवीर्य राजा ने शुभ दिन शुभ मुहूर्त में विशाल संघ लेकर शत्रुञ्जय की ओर प्रयाण किया / मार्ग में दुष्ट वेताल ने संघ के मार्ग को रोक दिया / उसी समय राजा ने इन्द्र द्वारा प्रदत्त प्रहार से वेताल द्वारा बनाए हुए पर्वत को चूर-चूर कर दिया / ___क्रमशः संघ के साथ आगे बढ़ता हुआ शत्रुञ्जय तीर्थ पर पहुँचा / राजा ने संघ के साथ भावपूर्वक यात्रा की और तीर्थ पर जीर्ण-शीर्ण मन्दिरों का जीर्णोद्धार कराया / इन्द्र महाराजा भी तीर्थ के उद्धार को देखकर अति प्रसन्न हुआ / तत्पश्चात् राजा संघ सहित गिरनार, आबू, अष्टापद, सम्मेतशिखर आदि तीर्थों की यात्रा करने के लिए गया / वहाँ पर सात जीर्ण मन्दिरों का उद्धार किया / - अ अन्त में दण्डवीर्य राजा ने अरीसा भवन में केवलज्ञान को प्राप्त किया / पृथ्वीतल पर विचरण करके अनेक भव्य जीवों को धर्म-बोध देकर शाश्वत मोक्ष पद को प्राप्त किया / तृतीय उद्धार - ईशान इन्द्र __दण्डवीर्य राजा के उद्धार के बाद 100 सागरोपम का दीर्घकाल व्यतीत हो गया / _ एक बार ईशान देवलोक के इन्द्र ने महाविदेह क्षेत्र में तीर्थंकर प्रभु के मुख से शत्रुञ्जय की महिमा सुनी / प्रभु ने शत्रुञ्जय तीर्थ के उद्धार का उपदेश दिया / जिसे सुनकर ईशान इन्द्र ने उस तीर्थ का उद्धार किया / 75