Book Title: Itihas ki Dharohar evam Karm Prashnottari
Author(s): Pragunashreeji, Priyadharmashreeji
Publisher: Pragunashreeji Priyadharmashreeji
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________________ जय-जय शब्द उच्चारा जी उच्चारा सिद्धगिरि सानी न मिला || इस प्रकार सगर चक्रवर्ती ने इस तीर्थ का सातवाँ उद्धार किया / आठवाँ उद्धार - व्यन्तर इन्द्र इस अवसर्पिणी काल के चौथे तीर्थंकर श्री अभिनन्दनस्वामीजी इस पृथ्वी तल पर विहार करते हुए एक बार शत्रुञ्जय तीर्थ पर पधारे / देवों ने समवसरण की रचना की / बार पर्षदा के मध्य में प्रभु ने अपनी दिव्य देशना दी और शत्रुञ्जय तीर्थ की अलौकिक महिमा का वर्णन किया / देशना सुनने के बाद व्यन्तर निकाय के इन्द्रों ने तीर्थ की स्थिति को अपनी नजरों से जीर्ण-शीर्ण देखा / मन में बहुत दुःखी हुए / तब व्यन्तर निकाय के इन्द्रों ने इस तीर्थ का उद्धार किया / नौवाँ उद्धार - चन्द्रयश राजा . आठवें तीर्थंकर श्री चन्द्रप्रभुस्वामीजी जब पृथ्वी तल को पावन करते हुए शत्रुञ्जय तीर्थ पर पधारे तब देवताओं ने समवसरण की रचना की / वहाँ चन्द्रप्रभ नगरी का राजा चन्द्रशेखर भी प्रभु की देशना सुनने के लिए आया / प्रभु की वैराग्यवाहिनी देशना को सुनकर राजा का हृदय वैराग्यवासित हो गया / उसने अपने पुत्र चन्द्रयश को राज्य सिंहासन सौंप कर प्रभु के पास दीक्षा ग्रहण कर ली / ___वह. चन्द्रशेखर राजर्षि संयम धर्म की निर्मल साधना करते हुए एक बार चन्द्रप्रभा नगरी में पधारे | चन्द्रयश राजा ने पिता मुनि का भव्य स्वागत किया / चन्द्रशेखर मुनि के उपदेश से चन्द्रयश राजा ने श्री चन्द्रप्रभुस्वामी का 79