Book Title: Itihas ki Dharohar evam Karm Prashnottari
Author(s): Pragunashreeji, Priyadharmashreeji
Publisher: Pragunashreeji Priyadharmashreeji
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________________ और तेजपाल सेनापति बने / इतने ऊँचे पद पर आने के बाद भी प्रतिदिन परमात्मा की पूजा सेवा तथा गुरु महाराज का दर्शन, वन्दन प्रवचन श्रवण किए बिना राजदरबार में भी नहीं जाते थे / तेरहवीं सदी के मध्यान्तर में सिद्धगिरि पर दादा के दरबार में एक घटना घटित हो गई / एक बार दादा के दरबार में मन्त्रीश्वर वस्तुपाल ने भव्य स्नात्र महोत्सव रखा / उस समय हजारों की संख्या में लोग दादा के दरबार में एकत्रित हो गए / सभी एक दूसरे के नीचे दबे जा रहे थे / धक्का-मुक्की, पडापड़ी होने लगी / हाथ में कलश लेकर लोग दादा का अभिषेक करने के लिए मूलगम्भारे में प्रवेश करने लगे परन्तु पीछे से आने वाले धक्के के फोर्स से लोग अपने बैलेंस को सम्भाल नहीं सके | उस समय के कलश आज जितने छोटे-छोटे नहीं थे, घड़े जितने बड़े-बड़े थे / ऐसी परिस्थिति में दादा की मूर्ति को कुछ नुकसान न हो जाए इसलिए पुजारियों ने दादा के चारों तरफ फूलों को लेकर मूर्ति को ढक दिया और उसकी सावधानी तथा सुरक्षा के लिए स्वयं मूर्ति के पास खड़े हो गए / यह स्थिति देखकर वस्तुपाल ने विचार किया कि आज तो पुजारी अच्छे हैं जो कि बुद्धिपूर्वक जिनबिम्ब की सुरक्षा कर रहे हैं परन्तु भविष्य में कोई ऐसे पुजारी आ जाएँ, जो कि मूर्ति को सम्भाल न सके और ऐसी भीड़ में कोई कलश दादा की मूर्ति के साथ टकरा जाए तो जिनबिम्ब को खण्डित होने में देरी नहीं लगेगी / अथवा मुगलों का सितारा चमकने लगे और मलेच्छ लोग आकर तीर्थ पर हमला करें और प्रभु प्रतिमा को भी खण्डित कर दें तो तत्काल नया जिनबिम्ब बनाकर प्रतिष्ठा हो सके उसके लिए मुझे अभी से ही सुन्दर पाषाण शिला को मंगाकर किसी गुप्त स्थान में रख देनी चाहिए / स्नात्र महोत्सव पूर्ण होने के पश्चात् मन्त्रीश्वर गिरिराज से नीचे उतरे और विचार करने लगे कि वर्तमान में अच्छे से अच्छा पाषाण तो मम्माणी खान का है और वह खान अभी मुसलमानों के कब्जे में है, परन्तु प्रतिमा बनाने के लिए पाषाण तो किसी न किसी तरह से प्राप्त करना ही चाहिए / 98