Book Title: Itihas ki Dharohar evam Karm Prashnottari
Author(s): Pragunashreeji, Priyadharmashreeji
Publisher: Pragunashreeji Priyadharmashreeji
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________________ दूंगा / आप कुछ दिन यहाँ विश्राम कीजिए / मैं भी आपके साथ हज करने आऊँगा, जिससे आपको रास्ते में कोई हैरान नहीं करेगा / कुछ दिनों के पश्चात् वस्तुपाल ने वाहण में सारा सामान भर दिया और अन्य कई कीमती चीजों को साथ लेकर स्वयं बादशाह की माँ के साथ वाहण में बैठकर मक्का पहुँच गया / वहाँ जाकर नगर के द्वार पर मन्त्री ने सोने का तोरण बान्धा / हज यात्रा पूरी करने के पश्चात् मन्त्रीश्वर माँ को लेकर वापिस आया और दिल्ली तक छोड़ने के लिए गया / शहर के बाहर मन्त्री ने अपना पड़ाव डाला / बादशाह की माँ नगर में गई, दिल्ली के दरबार में जाकर अपने बेटे मोजुद्दीन को मिली / बेटे ने कहा- माँ ! हज करके आ गई, रास्ते में कोई कष्ट तो नहीं पड़ा | माँ ने उसे खरे-खरे शब्दों में कहा- तू तो मेरा नाम मात्र का बेटा है सच्चा और वास्तविक बेटा तो मेरा वस्तुपाल है वस्तुपाल | जिसने मेरी पूरी सार सम्भाल की, मुझे साथ लेकर मक्का मदीना हज करने गया और यहाँ तक मुझे छोड़ने के लिए भी आया / वस्तुपाल का नाम सुनकर बादशाह एकदम चौंक गया | बोला माँ ! वह कहाँ पर है ? उसे साथ लेकर यहाँ क्यों नहीं आई ? माँ बोली- बेटा ! वह नगर में बाहर पड़ाव डाल कर बैठा है। मोजुद्दीन बादशाह ने तत्क्षण अपने व्यक्तियों को भेजकर वस्तुपाल को बुलाया / राजदरबार में उसका खूब सम्मान किया / प्रसन्न होकर बादशाह ने कहा- आपने मेरी माँ की बहुत सेवा और सम्भाल की- मैं आपके ऊपर प्रसन्न हूँ आप जो भी माँगना चाहो माँगो / वस्तुपाल ने कहा- बादशाह सलामत ! मुझे कुछ नहीं चाहिए आपकी रहमो-नजर ही मेरे लिए बहुत है / बादशाह ने बड़े प्रेम से कहा- मन्त्रीश्वर ! ऐसे नहीं चलेगा, आपको कुछ तो माँगना ही पड़ेगा / वस्तुपाल ने कहा- बादशाह ! मुझे और तो कुछ नहीं चाहिए परन्तु आपकी मम्माणी खान में से पत्थर चाहिए / बादशाह ने कहा- बस माँग-माँगकर भी क्या माँगा- पत्थर का टुकड़ा / इसमें कौन-सी बड़ी बात है, आपको जितना चाहिए उतना पाषाण खान में से निकलवा लीजिए / 100