Book Title: Itihas ki Dharohar evam Karm Prashnottari
Author(s): Pragunashreeji, Priyadharmashreeji
Publisher: Pragunashreeji Priyadharmashreeji
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________________ का प्रासाद जलकर भस्मीभूत हो जाता / अब तो मुझे सर्वप्रथम यहाँ पर पाषाण का मन्दिर बनाना चाहिए / युद्ध पूर्ण होने के बाद सबसे पहले लकड़ी के बदले पाषाण का जिनमन्दिर बनाऊँगा / बस वहाँ पर बैठे-बैठे दादा की साक्षी में संकल्प किया कि जब तक मन्दिर नहीं बनेगा तब तक प्रतिदिन एकासना करूँगा, भूमि पर शयन करूँगा, ब्रह्मचर्य का पालन करूँगा, मुखवास (ताम्बुल आदि) का त्याग करूँगा / इस प्रकार प्रतिज्ञा ग्रहण करके मन्त्री उदयन युद्ध के मैदान में पहुँच गया / सम्राट समरसेन के साथ युद्ध करते-करते अनेक वीर योद्धा मरण की शरण चले गए / मन्त्रीश्वर की देह भी बाण के प्रहारों से जर्जरित हो गई / सम्राट समरसेन मन्त्री के हाथों से मृत्यु शय्या पर सो गया / . .. विजय पताका को तो फहरा दिया परन्तु मन्त्री की काया भी युद्ध के घावों से जीर्ण-शीर्ण होकर भूमि पर गिर गई / मानो मन्त्री के जीवन का यह अन्तिम युद्ध था / भूमि पर गिरते ही उसका पुत्र बाहड़ तथा विचक्षण सैनिक आदि उसके चारों तरफ आकर खड़े हो गए / मन्त्री उदयन ने अपना अन्तिम समय जानकर चारों प्रकार के आहार का त्याग कर दिया / उसकी आँखों से अविरल अश्रुधारा बहने लगी / यह दृश्य देख सभी विस्मित हो गए / गुजरात का मन्त्री, वीतराग परमात्मा का उपासक और अन्त समय आँख से आँसू ! पुत्र बाहड़ ने पूछा- पिताजी ! आपकी आँखों में आँसू क्यों ? यदि आपकी कोई अन्तिम इच्छा हो तो कहिए, हम उसे पूर्ण करेंगे / मन्त्री ने कहा- इस समय यदि मुझे किसी साधु महात्मा का दर्शन हो जाए और उनके मुख से नवकार मन्त्र का श्रवण हो जाए, यह मेरी इच्छा है तथा शत्रुञ्जय तीर्थ का उद्धार कराने की मेरी भावना मन की मन में ही रह गई है / इसलिए मैं दुखी हूँ और रो रहा हूँ | इतना कहते-कहते मन्त्री की वाचा चुप हो गई, आँखें भर गई / पिता की बात सुन पुत्र बाहड़ ने कहा- पिताजी ! आपकी इच्छा पूरी होगी / जब तक सिद्धाचल तीर्थ का जीर्णोद्धार नहीं होगा तब तक मैं प्रतिदिन 94